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________________ सकलतीर्थ वंदु करजोड सुत्र (विश्व के तीर्थों को वंदना) -(भाग-१) । सकल तीर्थ वंदूं करजोड, जिनवर नामे मंगल कोड । समझ : इस सूत्र में समस्त तीर्थों को पहेले स्वर्गे लाख बत्रीश, जिनवर चैत्य नमूं निशदिश || | वन्दना है । अपने को बाहर अलोक में ठहरा कर बीजे लाख अठ्ठावीस कह्या, त्रीजे बार लाख सद्दह्यां । | सामने लोक यानी १४ राजलोक में नीचे की चोथे स्वर्गे अड लख धार, पांचमे वंदं लाख ज चार ।। | छःनरक पाताल को छोड़कर इनके ऊपर के भवछढे स्वर्गे सहस पचास, सातमे चालीस सहस प्रासाद । नपति-पाताल से लेकर ऊपर ऊपर यावत् सबसे आठमे स्वर्गे छ हजार, नव-दशमे वंदूं शत चार || ऊपर अनुत्तर विमान तक देखना है । ८ राजअगियार-बारमे त्रणसे सार, नव ग्रैवेयके त्रणसे अढार । लोक दिखें । इन में पांच भाग दिखे - पांच अनुत्तर स्वर्गे मली, लाख चोरासी अधिकां वली ।। (१) शाश्वते मन्दिर, सहस सत्ताणुं त्रेवीस सार, जिनवरभवन तणो अधिकार | | (२) अशाश्वते मन्दिर लांबा सो जोजन विस्तार, पचास ऊंचा बहोतेर धार ।। | (३) विचरते २० भगवान, एकसो एँशी बिम्ब प्रमाण, सभा सहित एक चैत्ये जाण । | (४) अनन्त सिद्ध, व सो कोड बावन कोड संभाल , लाख चोराणुं सहस चौंआल || (५) विद्यमान मुनि । सूत्र बोलते वक्त हाथ जोड़ वन्दना करते चलें । यहां १० गाथा में प्रथम भाग सातसे उपर साठ विशाल, सवी बिम्ब प्रणमुं त्रणकाल | में शाश्वते मन्दिर-मूर्ति को वन्दना है । इसमें भी ४ सात कोड ने बहोंतेर लाख, भवनपतिमां देवल भाख ।। भाग हैं. एकसो एँशी बिम्ब प्रमाण, एक एक चैत्ये संख्या जाण । (१) ऊपर के वैमानिक देवलोक के मन्दिर-बिंब तेरसे क्रोड नेव्याशी क्रोड, साठ लाख वंदूं कर जोड || (२) भवनपति के मंदिर-बिंब, बत्रीसे ने ओगणसाठ, तिर्छालोकमां चैत्यनो पाठ । (३) मध्य लोक के शाश्वत मन्दिर व मूर्ति और त्रण लाख एकाणं हजार, त्रणसे वीस ते बिम्ब जुहार ।। (४) व्यंतर ज्योतिषी के मन्दिर-बिंब असंख्य । व्यंतर ज्योतिषीमां वली जेह, शाश्वता जिन वंदूं तेह । उषभ-चंटानन-वारिषेण.-वर्द्धमान नाम गुणसण ।। ५ अनुत्तर में वैमानिक में पहले नीचे प्रथम देवलोक से शुरु करें । वहां दिखाई ३१८ नौ ग्रेवेयकमें संख्या के जितने विमान हैं । प्रत्येक में १-१ मन्दिर है अतः ३२ ३०० ११-१२ देवलोक में लाख, २८ लाख आदि मन्दिर देखें । यह भी यहाँ बाजू में दर्शित ४०० ९-१० के अनुसार नीचे से ऊपर तक देखा जाए । प्रत्येक मन्दिर लम्बा ६०००८ १०० योजन, चौडा ५० योजन ऊंचा ७२ योजन दिखे । कुल ४०,००० ७ मन्दिर ८४,९७,०२३ ५०,००० ६ इस प्रत्येक मन्दिर में १८० रत्नमय शाश्वत जिनबिंब हैं, मात्र ४ लाख | ५ ग्रैवेयक-अनुत्तर के ३२३ मन्दिरों में १२०-१२० जिनबिंब है | ३ देवलोक ४ देवलोक वैमानिक देवलोक १२ लाख ८ लाख १देवलोक २ देवलोक ८४,९६,७०० x १८० = १,५२,९४,०६,००० ३२ लाख ८४,९७,०२३ मादर ३२३ x १२० = ३८,७६० |२८ लाख = १,५२,९४,४४,७६० ★ अब नीचे पाताल में भवनपति-देवलोक देखना वहां मन्दिर ७,७२,००,००० (यहां १० भवनपति में मन्दिर क्रमशः लाख ६४-८४-७२, छ: में प्रत्येक में ७६ लाख, १० वें में ९६ लाख, कुल ७७२ लाख) प्रत्येक में जिनबिंब १८०, अतः कुल बिम्ब १३,८९,६०,००,००० को वन्दना । ★ अब ऊपर मृत्युलोक में ३,२५९ मन्दिर, व मूर्ति ३,९१,३२० ।
SR No.003233
Book TitlePratikraman Sutra Sachitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages118
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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