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________________ भावार्थ स्वर्ग, पाताल तथा मनुष्य लोक में जो भी तीर्थ-स्थान (जिनमंदिर) हो और वहाँ जितने भी जिनबिंब (प्रतिमाएँ) हों, उन सबको मैं नमस्कार करता हूँ । सूत्र परिचय 'जंकिंचि' शब्द से सूत्र का प्रारंभ होने के कारण इसका नाम 'जंकिंचि' सूत्र है। इसमें दोंनो के आलंबन से वीतराग बनने हेतु तीर्थों को संक्षेपतः वंदना की गई है। फलत: इसे 'लघु तीर्थंवंदन सूत्र' भी कहते हैं ५ 1 - 'जो संसार से तारे वह तीर्थ, इस तीर्थ के दो भेद है, जंगम व स्थावर जंगम अर्थात् गतिशील - हिलते डुलते । स्थावर अर्थात् अचल, स्थिर | जिनशासन और शासनधारक मुनि जंगम तीर्थ हैं। तीर्थंकरो के प्रसिद्ध मंदिर- स्थान, पवित्र क्षेत्र पवित्र भूमियाँ, कल्याणक भूमियाँ आदि स्थावर तीर्थ हैं। उदाहरणत: पावापुरी, सम्मेतशिखर, शत्रुंजय, गिरनार आदि । पवित्र तीर्थ-भूमियों जिनमंदिरों और जिनबिंबो को वंदना करने से हृदय में परमात्मा के प्रति भक्ति- बहुमान का पवित्र भाव जागरित होता है। विशेष चिन्तन करने से तीर्थंकरों के पावन चरणकमलों द्वारा पवित्रीकृत भूमियों से पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा प्राप्त होती है। इसी कारण तीर्थयात्रा का महत्त्व है। इस सूत्र के माध्यम से स्वर्ग, पाताल एवं पृथ्वी लोक पर स्थित सभी तीर्थों और उन में विराजमान जिनबिंबो को वंदना की गई है। Jain Education International ६८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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