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________________ नवकार गिनना, तथा बाद में आसन को पूँज कर उस पर बैठना। तत्पश्चात् ४८ मिनिट तक स्वाध्याय करना अर्थात् सूत्रगाथा गोखना, पारायण करना, धर्मग्रंथ वाचना-पढ़ना, धर्मसूत्र का अध्ययन करना, स्तोत्रपाठ, जाप, शुभभावना या धर्मध्यान करना, सारांश, शुभ भाव में रहना । सामायिक की अवधि में धर्म-तत्त्व, आत्मा और परमात्मा को छोड़कर अन्य कोई विचार नहीं करना चाहिए। नहीं कोई दूसरी बात करनी । ४८ मिनिट बाद विधिपूर्वक सामायिक पारना चाहिए। सामायिक पारने की विधि १. खडे होकर खमासमण देकर फिर खड़े होकर 'इरियावहियं' 'तस्स उत्तरी' तथा 'अनत्थ' सूत्र बोलना। एक 'लोगस्स' अथवा चार नवकार का काउस्सग्ग करना । (काउस्सग्ग में 'चंदेसुनिम्मलयरा' तक 'लोगस्स' मन में याद करना।) काउस्सग्ग पूरा होने पर 'नमो अरिहंताणं' कहकर काउस्सग्ग पारना । बाद में पूरा लोगस्स प्रगट कहना। २. फिर खमासमण देकर आज्ञा मांगना 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुहपत्ति पडिलेहूं?' गुरु कहे-'पडिलेहेह'। बाद मे 'इच्छं' कहकर ५० बोल के चिंतन के साथ मुहपत्ति पडिलेहना। ३. फिर खमासमण देकर पुनः खड़े होकर आज्ञा मांगना-'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सामायिक पार् ?' ४. गुरु कहे-'पुणो वि कायव्वं' - (सामायिक पुन: करने योग्य है।) हमको बोलना है - 'यथाशक्ति'। ५. फिर खमासमण देकर प्रगट कहना, 'इच्छाकारेण संदिसह ५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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