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________________ - क्षमा मांगू? 'खामेमि' अर्थात् मैं खमाता हूं-क्षमा मांगता हूं। क्षमा करना अर्थात् दूसरे के अपराध को समताभाव से सहन कर लेना, धैर्य रखना, उदारता दिखाना, करुणा करनी, बैर रखने की प्रवृत्ति का त्याग करना। क्षमा मांगने का भाव है कि सामने वाले व्यक्ति से अपने अपराध को क्षमा कर देने की याचना करना, अपने पर करुणा और उदारता करने की प्रार्थना करना, ऐसा निवेदन करना कि वह व्यक्ति हमारे अपराधों के कारण हमारे प्रति द्वेष-एतराज न रखे, प्रत्युत उन्हें क्षमा कर दे। ___इस सूत्र के माध्यम से अपने अपराधों को याद करके गुरु को बताकर, गुरु के समक्ष उन्हें स्वीकृत कर, शुद्ध हृदय से पश्चात्तापपूर्वक दुखित हृदय से क्षमा याचना की जाती है। तत्पश्चात् उन अपराधों को दूर करने के लिये तथा गुरु के प्रति उचित विनय प्रगट करने के लिए प्रवृत्ति की जाती है। गुरुवंदन की विधि __विनयपूर्वक दो बार 'खमासमण' सूत्र बोलकर गुरु महाराज को पंचाङ्ग प्रणिपात से वंदना करनी चाहिए। पश्चात् ‘सुगुरु सुखसातापृच्छा' सूत्र बोलकर उन्हे पंचप्रश्नपूर्वक सुखसाता पूछनी चाहिये। फिर 'अन्भुटिओहं' सूत्र द्वारा दाहिना हाथ जमीन पर स्थापन कर गुरु से क्षमायाचना करनी चाहिये। (नोट : यदि गुरु गणी, पंन्यास, उपाध्याय अथवा आचार्य हों तो सुखशाता पूछकर पुन: खमासमण पढ़कर ही वंदना करव अन्भुट्टिओऽहं' पढ़ना चाहिए । सारांश, पदस्थ को रू खमां २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003232
Book TitleAradhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages168
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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