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________________ पाऊंगा ? (२) पदस्थ अवस्था - कैवल्यज्ञान प्रकट कर समवसरण में विराज कर, शासनस्थापना कर हे प्रभो ! आपने धमोंपदेश से समस्त विश्व पर महान् उपकार किया । आपकी ही कृपा ने मुझे भी इस भूमिका तक पहुँचाया है। हे कृपालो ! अब मेरे प्रति आपकी उदासीनता ठीक नहीं । (३) रूपातीत अवस्था - जन्म, जरा, मृत्यु, रोग, शोक से रहित और अनन्तज्ञान और आनन्दमय अरूपी सिद्धावस्था को हे प्रभो ! आप पा चुके हो। इस अवस्था को मैं कब पाऊंगा ? इत्यादि चिन्तन करना । दिशात्याग त्रिक - दर्शन, पूजन और वन्दन करते समय प्रभुजी के सम्मुख दृष्टि रखना, आसपास की दो दिशाएँ एवं पिछली तीसरी दिशा अथवा आसपास की एक दिशा और ऊपर-नीचे की दो दिशाएँ कुल तीन दिशाओं में न देखना । प्रमार्जना त्रिक- चैत्यवन्दन करने की भूमिका जीवरक्षा हेतु ओघे, चरवले, दुपट्टे आदि के दशीवाले छोर से तीन बार प्रमार्जन करना । आलंबन त्रिक - सूत्र, अर्थ और प्रभु-प्रतिमा ये तीन आलंबन हैं। दृष्टि प्रतिमासम्मुख, वचन से सूत्रों का शुद्ध उच्चारण और मन से सूत्रों का अर्थ चिन्तन करना । मुद्रा त्रिक- (१) योगमुद्रा - बैठते समय दाहिने पाँव को नीचे रखें, बायें पैर को ऊपर उठावें, एवं दस उंगलियों को परस्पर शामिल कर, कमलकोश के आकार में दोनों हाथों को रखें, दोनों हाथों की कुहनी पेट पर रखे और मस्तक को थोड़ा झुका देवे । शरीर की इस स्थिति को योगमुद्रा कहा है। इसी मुद्रा में चैत्यवंदन, नमुत्थुणं आदि सूत्र पाठ बोले जाते हैं । (२) जिनमुद्रा - खड़े रहते समय दोनों पाँवों के बीच आगे की तरफ चार अंगुल और पीछे के भाग में दोनों एड़ियों के बीच कुछ कम फासला रख कर दोनों हाथों को लम्बा कर देना। कायोत्सर्ग ध्यान इस मुद्रा में करें। (३) मुक्तासुक्तिमुद्रादस उंगलियों को आमने-सामने रखकर मोती की छीप की आकृति में दोनों हाथों को जोड़कर ललाट पर लगाना । इसी मुद्रा में “जावंति चेइआई” “जावंत के वि साहू" और "जय वीयराय” सूत्र बोले जाते हैं । प्रणिधान त्रिक- मन, वचन और काया इन तीनों का प्रणिधान अर्थात् एकाग्रता रखना । इस प्रकार दस त्रिकों का संक्षेप में वर्णन किया है। इनके अतिरिक्त भी सावधानी की कुछ बातें बताई जाती हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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