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________________ श्री अहँ नमः ॥ श्री जैन धर्म विषयिक प्रश्नोत्तर प्र.१. जिन ओर जिनशासन इन दोनो शब्दोंका अर्थ क्यो है । उत्तर : जो राग द्वेष क्रोध मान माया लोन काम अज्ञान रति अरति शोक हास्य जुगुप्सा अर्थात् घ्रिणामिथ्यात्व इत्यादि भाव शत्रुयोंकों जीते तिसकों जिन कहते है यह जिन शब्दका अर्थ है जैसे पूर्वोक्त जिनकी जो शिक्षा अर्थात् उत्सर्गापवाद रुप मार्ग द्वारा हितकी प्राप्ति अहित का परिहार अंगीकार ओर त्याग करना तिसका नाम जिनशासन कहते है । तात्पर्य यह है कि जिनके कहे प्रमाण चलना यह जिनशासन शब्द का अर्थ है ? अनिध्यान चिंतामणि और अनुयोगद्वार वृत्यादिमे है | प्र.२- जिनशासनका सार क्या है | उत्तरः जिनशासन और द्वादशांग यह एकहीके दो नाम है इस वास्ते द्वादशांगका सार आचारंग है और आचारंगका सार तिसके अर्थका यथार्थ जानना तिस जानने का सार तिस अर्थका यथार्थ परकों उपदेश करना तिस उपदेशका सार यहकि चारित्र अंगीकार करना अर्थात् प्राणिवध १ मृषावाद २ अदत्तादान ३ मैथुन ४ परिग्रह ५ रात्रिभोजन ६ इनका त्याग करना इसकों चारित्र कहते है अथवा चरणसत्तरीके ७० सत्तर भेद और करण सत्तरिके ७० सत्तर भेद ये एकसौ चालीस १४० भेद मूलगुण उत्तरगुण रूप अंगीकार करे तिसकों चारित्र कहते है तिस चारित्र का सार निर्वाण है अर्थात् सर्व कर्म जन्य उपाधि रूप अग्निसें रहित शीतली भूत होना तिसका नाम निर्वाणका कहते है तिस निर्वाणका सार अव्याबाध अर्थात् शारीरिक और मानसिक पीडा रहित सदा सिद्ध मुक्त स्वरूप मे रहना यह पूर्वोक्त सर्व जिनशासनका सार है यह कथन श्री आचारंग की नियुक्ति मे है | प्र.३. तीर्थंकर कौन होते है और किस जगें होते है और किस काल में होते है। उ. जे जीव तीर्थंकर होने के भवसें तीसरे भवमें पहिलें वीस स्थानक अर्थात् वीस धर्म के कृत्य करे तिन कृत्यों से बना नारी तीर्थंकर नाम कर्म रूप पुन्य निकाचित उपार्जन करे तब तहासें काल करके प्रायें स्वर्ग देवलोकमें 1000000000000000000000000000000000000 b0%AGAGANAGAGAG00000000000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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