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________________ ........ .......... ........... तिस विषयक समाधान ..... ......... १११ पुण्य पाप का फल देनेवाला। ईश्वर नहीं किंतु कर्म .........११२-११३-११४-११५-११६-११७-११८ जगत अकृत्रिमहै . .......... ११९ जिन प्रतिमाकी पूजा विषयक ब्यान .............१२०-१२१-१२२-१२३ देव अरु देवोंका भेद सम्यक्त्वी देवताकी साधु श्रावक भक्ति करे, शुभाशुभ कर्मके उदय में देवता निमित्त है......................१२४-१२५-१२६-१२७ संप्रतिराजा अरु तिसके कार्य ................ .......... १२८-१२९ लब्धि अरु शक्ति .............. १३०-१३१-१३२-१३३-१३५ ईश्वर की मूर्ति .............. ........... १३९ बुद्ध की मूर्ति अरु बुद्ध सर्वज्ञ नही था तिस विषयक ब्यान ... ..............१४०-१४१-१४२ जैनमत ब्राह्मणो के मतसे नही किंतु स्वतः अरु पृथक् है १४३ जैनमत अरु बुद्धमत के पुस्तकों का मुकाबला .............. १४४-१४५ जैनमतके पुस्तकों का संचय .............. ......... १४६-१४७ जैन आगम विषयक जैनीयोंकी बेदरकारी अरु इसी लीये उनोंको ओलंभा ......................१४८-१४९-१५० जैनमंदिर अरु स्वधर्मिवत्सल करने की रीति ............ जैनमतका नियम सख्त अरु इसी लीये तिसके पसारे में संकोच ..... चौदपूर्व .. ............ १५३ अन्य मतावलंबियोने जैनमतकी कीई हुई नकल जैनमत मुजिब जगतकी व्यवस्था अष्ट कर्मका ब्यान अरु तिसकी १४० प्रकृतियोंका स्वरूप महावीर स्वामिसें लेकर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण तलक आचार्योकी बुद्धि अरु दिगंबर श्वेतांबरसें पिछे हवा तिसका प्रमाण. ...... . . . . . . . . . . . .................. १५५ देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने महावीर भगवानकी पदपरंपरासे चला आता ज्ञानको .................. १५१ १५२ ..... १५४ Odonos Ace GORDADO COMOROA poG0000000000000000000AGSAGAGAGAGr Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003229
Book TitleJain Dharm Vishayak Prashnottara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Kulchandravijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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