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________________ तरह से पढ़ाते हैं । पैसों के लिये पिता से अलग होते हैं, या पिता बदलते हैं (९) पैसों के लिये झगडे होने के कारण तो आज कोर्टोमें बहुत केस रहते हैं । हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़े जाते हैं। ऐसे झगडों में निकट के स्वजनों के साथ झगड़ने में या उनसे अलग होने में भी धक्का नहीं पहुंचता । (१०) पैसों के लिये अच्छा कमाऊ बेटा पत्नी को लेकर पिता से अलग रहने चला 1 उस मन्दिरवाले सेठ के बारे में आपको पता है ? निजी खर्चसे मन्दिर बनवाया और बाद में भी पूजा - भक्ति के प्रसंग अवसर रखते गये व पैसे खर्च करते गये । हालांकि इससे उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता था, फिर भी - चार पुत्रों व उनकी माता को लगा कि 'ये तो बहुत खर्च कर रहे हैं.' । बेचारे सेठ पर पाबंदी लग गयी । वे बहुत समझाते कि 'देखो, इससे तो पुण्य बढ़ता है, इससे तो कमाई चालु रहती है और पूर्व भव में भी धर्म करके आये हो, इसीलिये तो यहां जन्म मिला है । तो फिर धर्म के प्रति ऐसी नफरत क्यों ?' लेकिन पुत्र माननेवाले थे ? आखिर पुत्रोंने कह दिया.. 'इस घर में इस तरह बेकार खर्च करना हो, तो चलेगा नहीं । किसका घर ? किसके पैसे ? फिर भी सेठ बिना कुछ बोले घर छोडकर खाली हाथ निकल पड़े। पुत्रों व उनकी माता ने राहत की सांस ली। पैसे खतरनाक न लगे, इसीलिये पुत्र झगड़ा करके उपकारी पिता के प्रति कृतघ्न बने 1 (११) राजस्थान में एक भाई ने एक लड़के को गोद लिया । पैसा एक ऐसी खतरनाक चीज है, जिसके लिये बाप भी बदले जाते हैं। लाखों की जायदाद के लोभ में लड़का गोद गया। एक बार बाप-बेटे के बीच ऐसी नोक-झोंक चली कि एक-दूसरे पर जानलेवा प्रहार करके दोनों मरे । (१२) पैसे खतरनाक नहीं लगते, इसीलिये तो आज कैसे-कैसे घोर जीवहिंसक साधनों के धंधे चलने लगे हैं। बंबई में एक नवयुवक दवा की दुकान पर नौकरी करता था। उसने मुझे बताया.. 'साहेबजी ! मेरा सेठ जैन है, परन्तु उसका दिल कितना निष्ठुर होगा ? 'मुझे एक बार कहा कि 'ले, यह चूहे मारने की दवा का बंडल 'फलां जगह पहुंचाकर आ ।' मैंने कहा - 'सेठजी ! यह तो मुझसे हर्गिज नहीं हो सकेगा। यदि आपको न चले, तो मैं दूसरी नौकरी खोज लुंगा ।' बाद में सेठ ने मुझसे आग्रह नहीं किया, क्योंकि उन्हें मेरी नेकी की निष्ठा पर भरोसा था । परन्तु गौर करने की बात तो यह . है कि पैसों के लिये कैसा क्रूर धंधा ! जिसे पैसे खतरनाक लगे, वह तो तुरन्त सोचेगा कि 'क्या खतरनाक पैसों के लिये ऐसे जीवनाशक साधनों का व्यवसाय किया जाय ? नहीं चाहिये ऐसे पैसे ! कई व्यवसाय ९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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