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________________ न्याय से धर्म जितना साधे उतना आत्मा को लाभ ही है, पाप और भावी दुःख के विरुद्ध उतना बचाव प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, बल्कि सच्चे दिल से किये गये इतने थोडे धर्म के भी द्रढ संस्कार भविष्य में फलदायक बनते हैं और पाप बुद्धि में से अंशतः ही सही पीछे हटाते हैं, और ज्यादा धर्म की तमन्ना जाग्रत करते हैं। अत: जन्मों-जन्म की मृत्युओं के विरुद्ध यहीं पर जब जगे तब से सुबह मान कर रक्षा-रुप धर्म में लग जाना आवश्यक है, क्योंकि रक्षा का श्रेष्ठ अवसर इस मानव-भव में ही है। ऐसा सुंदर भव गँवा देने के बाद मानवेतर भव में क्या कर सकेगा? यहाँ बुढापे में धर्म के साधारण - से कष्ट से घबराता है, लेकिन परलोक में इससे कई गुने कष्ट पडेंगे, वे कैसे सहे जाएँगे? भीलों के साथ लडाई : मानभट आती हुई मौत के सामने कायरता-वश यथासंभव बचाव करने कटिबद्ध हो गया, और इतने में ही भील भी आ पहुँचे और इसे मारने दौडे। यह भी बचने के लिए उनके सामने प्राण हथेली में लेकर मारामारी करने लगा। वे इसे अकेला देखकर मारने आये थे परन्तु यह प्राणों की परवाह छोडकर चोट खाकर भी सामना करता है। ऐसा करते हुए वह घायल होकर नीचे गिर पड़ा। इसके बाद भील उसे ऐसे ही छोडकर लौट पडे। मानभट काफी चोट खाकर भी जिंदा बच गया ! बाद में वह अपने मुकाम पर लौटा। सोचने लगा कि 'यदि भीलों के आगे कायर बनता या शरण में जाता तो बचना मुश्किल था। (१) मोह के आगे कायरता : मोह के विरुद्ध होनेवाले युद्ध में यही बात है। (१) यदि उससे डर कर भागने लगें तो वह पीछा करेगा । उदाहरणत: घर में क्लेश होता है, सबका सुनना पडता है, इसलिए विचार आया कि 'इस के बजाय दीक्षा ही ले लें जिससे किसीका कुछ न सुनना पडे।' ऐसा सोच कर दीक्षा ले तो उसमें उसका टिकना कठिन है,क्योंकि यहाँ भी गुरु से या किसी साधु या श्रावक से अच्छी न लगनेवाली बात सुनने के प्रसंग तो बनेंगे। तब स्वभावत: फिर आकुल-व्याकुल होगा। यह क्या हुआ? मोह पीछे पड गया । अब बचने का सामर्थ्य नहीं है। मोह का सामना करने की ताकत नहीं है, अत: उससे पछाडा जाएगा। रोगिष्ट मन कहेगा - 'हाय ! यहाँ भी आफत है। हमने तो सोचा था कि साधुजीवन में किसी का कुछ सुनना नहीं पडेगा। लेकिन घर में तो अमुक - कुछ इनगिने - ही सुनानेवाले थे जबकि यहाँ तो कोई भी सुनाता है, अतः इससे तो घर बेहतर है, चलो घर। ' बस, हो गया बेचैन । अब यह क्या टिक सकता है ? और शायद टिके भी तो अन्तर में सच्चे चारित्र के भाव कैसे रहें ? मोह के साथ युद्ध : इसके बदले यदि सामना करे किसके सामने ? सुनानेवाले के सामने नहीं, बल्कि अपने मोह के सामने; किस तरह ? तो ऐसे - (१) उत्तम उच्च कोटि की क्षमा-सहिष्णुता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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