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________________ - मानव कोई पशु की तरह एक शरीर या पेट नहीं, परन्तु दिमाग है, दिल है। __ महत्त्व पेट या पैसे का नहीं, दिल का है :- पेट चाहे जैसे ऊंचे पकवानों से क्यों न भरता हो, चाहे जितने पैसे क्यों न मिले हों, परन्तु दिल यदि अभिमान से पीड़ित हो, ईर्ष्या से जलता हो, क्षुद्रता-दीनता से दुःखित हो, तो जीवन एक निरभिमानी संतोषी गरीब से भी बदतर है। स्थाणुने स्वयं को कूँए में धकेलनेवाले मायादित्य को जंगल से बाहर निकालकर गांव में ले जाकर मरहमपट्टी आदि करायी व जब तक पूर्ण रुप से स्वस्थ न हुआ, उसकी पूरी सेवा की । मायादित्य को अपने रत्न चले जाने का अफसोस न हो, इसके लिये उसे आश्वासन देता है कि 'भाई । घबराना मत । ये मेरे पांच रत्न हैं। इनमें से ढाई तेरे और ढाई मेरे । चलो, अब घर चलें।' कहिये, सज्जनता की कोई हद है ? हो भी कहां से? दुर्जन को यदि दुर्जनता की हद न हो, तो सज्जन को सज्जनता की हद कहाँ से हो ? थोड़े से भी सुकृत का महत्त्व : आपने कभी सज्जनता का ऐसा प्रयोग किया है ? क्या करने लायक नहीं ? क्या मन में ऐसा नहीं होता कि 'ऐसा सुन्दर मानव जीवन व इसमें अति उत्तम जिनशासन पाया है, तो पूर्व जीवनों में की हुई बेहद दुर्जनताओं के पाप मिटाने के लिए एकाध भी बेहद सज्जनता का प्रयोग करूं?' इससे कम से कम अंत समय में इतना आश्वासन तो रहे कि 'ठीक है, इतनी तो सज्जनता कमायी है। इतना प्रयत्न भी बुनियाद रुप बनेगा, उस पर आगे बड़ी इमारत बनाने के लिये जगह हो गई । बुनियाद ही नहीं, तो आगे इमारत कैसे बने?' . स्थाणु की इतनी सज्जनता देखकर मायादित्य को विचार आया कि अरे ! हिमसियचंदविमलो पए पए खंडिलो तहा सुयणो । कोमल मुणाल सरिसो, सिणेहतंतू ण उक्खुडइ ॥ बर्फ, शक्कर व चन्द्र जैसा निर्मल सज्जन पुष्प के डंठल की तरह कोमल होता है। कदम-कदम पर संकट आने पर भी वह स्नेह के तार नहीं तोड़ देता । डंठल को चाहे जहाँ से तोड़ो, उसमें से सुकोमल, स्निग्ध रेशे निकलते ही हैं। इसी प्रकार सज्जन को कोई एक प्रसंग में या दूसरे प्रसंग में विकट संयोगों में रखे, फिर भी उसके दिल में से स्नेह के ही तार निकलते हैं, स्नेह का ही व्यवहार दिखता है। क्योंकि वह दिल हिम जैसा उज्ज्वल होता है, शक्कर जैसा श्वेत व चन्द्र जैसा निर्मल होता है। यहाँ आपको सवाल उठेगा कि.... चित्त की निर्मलता के साथ स्नेह का संबन्ध कैसे ? प्र. - दिल निर्मल हो, तो उससे स्नेह के तार क्यों रहा ही करते हैं ? सामनेवाला बहुत ही दुष्टता करे, तो तार क्यों टूट नहीं जाते ? स्नेह क्यों सूख नहीं जाता? . उ. - निर्मलता एक ऐसी चीज है कि उसकी उपस्थिति में न स्नेह सूखता है, न स्नेह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003228
Book TitleKuvalayamala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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