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________________ यह सुनकर सब चौंक उठे । वृद्ध मंत्री ने कहा - 'देखिये ! महाराज के साथ तो सदा अंगरक्षक होते ही हैं, इन्हे लात मार ही कौन सकता है ? या तो गोद में लिया हुआ बाल राजपुत्र, या अन्तपुर में महारानी प्रेम में कभी रूठकर हल्की सी लात की तरह पाँव लगा दे।' इन दोनों को तो सोने के खिलौने ये हार का इनाम ही दिया जा सकता है, सजा तो नहीं दी जा सकती ! यह सुनकर सब नौजवान एकदम ठंडे पड़ गये । युवतीवर्णन धर्मकथा कैसे ? गहराई से, दीर्घ दृष्टि से वस्तु तत्त्व को देखे-समझे बिना सीधे ही जजमेंट देने में इन्सान गलती करता है । बच्चे को पेड़े का लालच दिया या कपिल केवली ने चोरों से रास में युवतियाँ शामिल हो तो मजा आये, ऐसा कहा, 'यह पापवचन है, पापकथा है,' ऐसा जजमेंट देनेवाला भी गलत साबित होता है । शायद उसे लगता होगा कि 'अरे ! नारी का शृंगार रस से वर्णन भला धर्मकथा कैसे' परन्तु उसे शायद यह पता नहीं कि ऐसे जीव को पहले-पहेले ऐसा कुछ न कहकर सीधे ही धर्म की बात कही जाय, तो क्या वह धर्मवचन सुनने को तैयार होगा ? पहले तो वह अपने विषय-रस की बात ही ध्यान से सुनेगा । तब उसे लगता है कि 'महाराज अच्छा बोलते हैं, चलो उनकी बात पर ध्यान दुं । देखुं तो सही अब आगे ये क्या कहते है ?' इस प्रकार वह पहला वाक्य तो आगे कहे जाने वाले धर्मोपदेश के प्रति जिज्ञासा पैदा करता है । ऐसी जिज्ञासा जगाने वाला वचन भी धर्मघचन है, धर्मकथा ही है । हाँ वक्ता को बाद में ऐसा जोरदार प्रेरक धर्मवचन भी बोलना आना चाहिये । वैराग्य का स्रोत बरसाने की यदि शक्ति न हो, तो वक्ता को धनसंपत्ति - श्रृंगार आदि का वर्णन भी नहीं करना चाहिये । प्रभावना गलत लालच क्यों नहीं ? सारांश - धर्म की ओर ले जाने वाली भूमिका भी धर्म के अन्तर्गत है । इसीलिये तो जो कुछ लोग कहते हैं कि इन लोगों को पूजा या व्याख्यान में प्रभावना देते हो, यह तो रिश्वत है, आप झूठा लालच जगाते हो। ऐसा कहने वाले का जजमेंट सिर्फ ऊपरी है, बिना विचारा हुआ कथन है । उसे यह मालुम नहीं कि चाहे लालच में ही सही, ये जीव मंदिर उपाश्रय तो आये हैं न ? फिर तो कोई अच्छा धर्मसंगीतकार या धर्मोपदेशक उन्हें प्रभुभक्ति में या धर्मबुद्धि या वैराग्य भावना १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003227
Book TitleKuvalayamala Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvanbhanusuri
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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