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________________ ३७ खुद को भी आश्चर्य हुआ । स्वयं इसका उत्तर न समझ सका तो उसने मुनिवर से पूछा । उसी समय पूर्वोक्त केवलज्ञानी महात्मा वहाँ पधारे । राजा तथा मुनिवर दोनों कुम्हार सहित उन्हें वंदन करने के लिए गये । राजा ने गधे के विषय में पूछा तो केवली भगवंत ने समुद्र तथा सिंह - दो भाइयों की संपूर्ण कथा आरंभ से बताई । वे आगे बोले, "यह गधा उसी समुद्रपाल राजा का छोटा भाई सिंह का जीव है । संसार में घोर-तीव्र वेदना भोगने के पश्चात् वह कुछ अल्प पापकर्मवाला बना होने के कारण छ: बार गधे के रूप में जन्मा था । सातवें भव में वह तीन इन्द्रियोंवाला जीव बनकर पुनः कर्म भोगना शेष होने के कारण पुनः छः बार इसी नगर में गधा बना था । यह उसका पुनः छठी बार का गधे का जन्म है । इस प्रकार गधे के रूप में उसके बारह अवतार हए हैं । सिंह के जन्म में उसने देवसंबंधी द्रव्य में से बारह हज़ार दिनार का विनाश (चौर्य) किया था । उस कर्म को भोगना अभी शेष होने के कारण उसकी ऐसी दशा हुई है । बारह हज़ार दिनार देवद्रव्य का उसने विनाश किया था उस कर्म के परिणाम स्वरूप उसे बारह बार गधे का जन्म मिला है । प्रत्येक जन्म में गधे के अवतार के समय कुंभकार के लिए इस पर्वत पर चढने के अभ्यास के कारण अब वह स्वयं ही पर्वत पर चढ़ता है ।" केवलज्ञानी के मुख से यह बात सुनकर राजा चंद्रादित्य के मन में गधे के प्रति दया जागृत हुई । उसने कुम्हार को गधे की देखभाल सविशेष अच्छी तरह से करने की सूचना दी । कुम्हार भी अब प्रयत्नपूर्वक उसका पालन करने लगा । भद्रिक परिणामी गधे की समय आने पर मृत्यु हुई । भद्रिक परिणाम के कारण उसे मनुष्यजन्म प्राप्त हुआ । वह मुरस्थल ग्राम में भानु नामक ग्रामीण कुंभकार ही पर्वत पर यह बात र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003225
Book TitleNabhakraj Charitra
Original Sutra AuthorMerutungacharya
AuthorGunsundarvijay
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devdravya, & Story
File Size3 MB
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