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________________ पुरुषार्थ ही सफलता की कुंजी। सत्वं विना हि सिद्धिर्न ।। पुरुषार्थ ही सफलता की शर्त है। अमेरिका के एक जंगल में एक नवयुवक दिन में लकड़ियां काटता था। वह पढ़ना चाहता था, लेकिन गरीब था और नजदीक कोई विद्यालय भी नही था। अतः उसने स्वयं ही घर में पढ़ने का निश्चय किया। पुस्तकालय घर से दस मील दूर था। वह अपने कार्य से अवकाश पाकर दस मील दूर पैदल जाकर किताबें लाता, लकड़ी जलाकर पढ़ता और समय से पूर्व किताबें लौटा देता। पढ़-लिखकर वह वकील बना और उसने स्थानीय अदालत में वकालत शुरु की, लेकिन इस पेश में स्वयं को सही स्वरुप में नही रख पाता क्योंकि पैसे के अभाव में कपड़ो को कैसे दुरस्त रखे ? उसके एक मित्र ने व्यंग किया, "तू वकील तो लगता ही नही एक उजाड़ देहाती जरूर लगता है, ऐसे में वकालत कैसे चलेगी ?'' उसने कहा, ''चले या न चले मैं केवल पोशाक में विश्वास नही करता। मेरा तो विश्वास एक बात में हैं कि मैं झूठा मुकदमा नही लडूंगा।'' इसलिए वह अपने मुवक्किल से पहले पूछता, "तुमने गलती की है या तुम्हें फंसाया गया है ?'' जब मुवक्किल कहता, फंसाया गया है, तब वह मुकदमा लड़ता। जानते हो वह नवयुवक कौन था ? वह युवक था अब्राहम लिंकन, जो तीस साल की अवधि में कई बार हारने के बावजूद निराश नहीं हुआ और अपने पुरुषार्थ के बल पर ५२ वर्ष की आयु में अमेरिका का राष्ट्रपति चुना गया। जवाहर लाल नेहरू ने कहा है, सफलता उसके पास आती है जो साहस करते हैं और बोध से कार्य करते है। यह उन कायरों के पास बहुत कम आती है जो परिणामों पर विचार करके ही भयभीत बने रहते हैं। 120 Gain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003221
Book TitleStory Story
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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