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________________ भले की हो भावना || शिवमस्तु सर्वजगतः || बहुत से याचक भीख माँगते वक्त बोलते हैं - दे उसका भी भला और न दे उसका भी भला ! इसका मतलब यह है कि कोई मुझे कुछ दे या न दे, मैं तो सबका भला चाहता हूँ। लोक कल्याण की यह भावना साधुजनों में कूट-कूट कर भरी रहती है। अपनी दुकान खोलने से पहले एक मंगलाएक दुकानदार चरण बोला करता था. गजानन आनन्द करो, कर सम्पत में सीर । दुश्मन का टुकड़ा करो, ताक लगाओ तीर ।। को सम एक साधु ने जब यह सुना तो उसने झाया कि मंगलाचरण में मंगल भावना ही प्रकट होनी चाहिये । तीर से दुश्मन के टुकड़े कर देने की भावना मंगल नहीं है।. दुकानदार I तब दुकानदार बोला-महाराज ! आप तो ज्ञानी हैं और हम तो कुछ नहीं जानते। आप ही यदि हमें कुछ सिखा देंगे तो आगे से हम वैसा ही बोलेंगे । तब साधु महाराज ने उसे निम्नलिखित पद सिखाया गजानन आनन्द करो, कर सम्पत में सीर । दुर्जन को सज्जन करो, नौत जिमावे खीर ॥ यह छन्द सुनकर दुकानदार को बड़ी खुशी हुई। उस दिन से वह इसी छन्द का उच्चारण करने लगा। सब के भले की भावना में ही हमारा कल्याण है। 18 Jain Education International For Private & Personal Use Only happy www.jainelibrary.org
SR No.003221
Book TitleStory Story
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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