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________________ नीति-शतक, श्रृंगार-शतक और वैराग्य-शतक जैसे अमर ग्रंथों के प्रणेता महाराज भर्तृहरि रानी पिंगला के चरित्र की पोल खुल जाने से विरक्त हो कर संन्यासी बन गये और जंगल में जा कर तपस्या करने लगे। ___एक दिन की बात है। वे शरद ऋतु की पूनम की रात को इधर-उधर टहल रहे थे। अचानक मार्ग में चाँदनी से चमचमाते लाल माणिक्य रत्न को देखकर वे उसकी ओर आकृष्ट हए। उसे उठाने के लिए धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए वे उसके निकट पहँचे। उन्होंने सोचा कि यह कितना सुन्दर रत्न है, पर कोई इसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा हैं। जब तक गुणों की कदर करने वाला कोई न हो, गुणवानों को सम्मान नहीं मिलता। भर्तृहरि धीरे से नीचे झुके। उस रत्न को उठाने के लिए हाथ से छुआ, तो हाथ गीला हो गया। वह रत्न नहीं था। वह तो पान की पीक थी। तब भर्तृहरी बोले - कनक तजा कान्ता तजी, तजा सचिव का साथ। धिक मन धोखे लाल को, रखा पीक पर हाथ || धन, पत्नी, मंत्री, राज्य आदि सबका त्याग करने पर भी मन में तृष्णा मौजूद है, यह जानकर वे बहुत लज्जित हुए। भर्तृहरी की फटकार ।। भवतण्हा लया वुत्ता भीमा भीमफलोदया ।। E ve Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003221
Book TitleStory Story
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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