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________________ कुसंगत का असर 20. De JL किसी नगर में एक तोता बेचने वाला आया। उसके पास दो पिंजरे थे। दोनों में एक-एक तोता था। तोते वाले ने एक तोते का मूल्य रखा था पचास रुपया तथा दूसरे का पाँच रुपया। संयोग की बात कि उस नगर के राजा की सवारी उधर =m-ad से निकली। राजा ने तोते देखे तो दोनों तोते खरीद लिये। रात को जब राजा सोने लगा तो उसने अपने नौकर को आदेश दिया कि पचास रुपए वाले तोते का पिंजरा उसके पलंग के पास टाँग दिया जाए। फौरन आदेश का पालन हुआ । राजा सो गया। जैसे ही भोर हुई, तोते ने भजन गाना शुरू किया। फिर सुंदर-सुंदर श्लोक पढ़े। राजा बहुत प्रसन्न हुआ। अगले दिन राजा ने दूसरे पिंजरे को पास रखवाया। जैसे ही सवेरा हुआ, उस तोते ने गंदी-गंदी गालियाँ बकना शुरू कर दीं। राजा की त्योरियाँ चढ़ गईं। उसने नौकर को आदेश दिया कि इस दुष्ट को तुरंत मार डालो। पहले तोते का पिंजरा भी पास ही रखा था। उसने राजा से प्रार्थना की, "इसे मारिए मत। यह मेरा सगा भाई है। हम दोनों एक ही साथ जाल में फँसे थे। मुझे एक संत ने खरीद लिया। उनके यहाँ मैंने भजन सीखे। इसे एक चांडाल ने खरीदा, जहाँ इसने गालियाँ सीख लीं। इसका कोई दोष नहीं। यह तो संगत का असर है।" -100-00 संसार में ऐसे अपराध नही हैं, जिन्हें हम चाहें और क्षमा न कर सकें । संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति संसर्ग से ही दोष गुण उत्पन्न है।
SR No.003221
Book TitleStory Story
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanbodhisuri
PublisherK P Sanghvi Group
Publication Year2011
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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