SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 6 आनंदघन: कबीर, मीरा और अखा के परिप्रेक्ष्य में विक्रम की पंद्रहवीं सदी में कबीर ने जाति, ज्ञाति, संप्रदाय, बाह्याचार और धार्मिक मतमतान्तरों से परे होकर साधक की सत्यमय अनुभवबानी बहाकर ज्ञान का नया प्रकाश फैलाया । इसके बाद विक्रम की सत्रहवीं सदी में आनंदघन के पदों में ऐसी भावनाओं की प्रतिध्वनि सुमधुर ढंग से गूंजती हुई सुनाई देती है । कबीर और आनंदघन ये दोनों अपनी सुरता की मस्ती में मस्त रहनेवाले साधक थे । कबीर ने जड़ रूढ़ियों, अंध श्रद्धायुक्त रीतिरिवाजों, परम्परागत कुसंस्कारों और उससे भी विशेष दंभी धर्माचरणों का प्रचंड विरोध किया, विद्रोह किया । आनंदघन में विद्रोह की झलकी है पर उसकी मात्रा संत कबीर जितनी नहीं है। ये दोनों साधक मस्तराम हैं । आध्यात्मिक अनुभव के दृढ़ आधार पर उनकी साधना टिकी हुई है । जगत की ओर दोनों लापरवाह हैं । कबीर या आनंदघन दोनों में से एक भी अज्ञान के अंधकार या रुढ़ियों के बंधनों में जकड़े हुए आदमी को देखकर हमदर्दी नहीं जताते, उनकी बेचैनी ऐसे जीवों के प्रति अनुकम्पा के रूप में प्रकट नहीं होती । वे तो ऐसी मिथ्या बातों पर जबरदस्त प्रहार करते हैं । ऐसे रूढ़ाचारों को जड़-मूल से उखाड़ फेंकने की लगन इन दोनों साधकों में है, इसलिए उसे सह लेने के बदले कबीर व्यंग्य से और आनंदघन उपहास से उसकी भर्त्सना करते हैं । आनंदघन के स्तवनों में शास्त्रज्ञान और जैन सिद्धांत विषयक मार्मिक जानकारी का परिचय प्राप्त होता है । लेकिन उनके पदों में वह शास्त्रीय शैली या वह सिद्धांत-निरूपण देखने को नहीं मिलता । यहाँ तो विरही भक्त या अलख का नाद जगानेवाले मर्मज्ञ संत के दर्शन होते हैं। कबीर आत्मा और परमात्मा की प्रणयानुभूति आलेखित करते हैं, तो आनंदघन उनके पदों में सुमति की चेतना के प्रति अकुलाहट व्यक्त करते हैं । कबीर के पदों में आत्मा के वियोग का दर्शन है । उन्होंने प्रेम का प्याला पिया है और उस प्रेम के प्याले ने कैसी स्थिति निर्मित की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003220
Book TitleBhartiya Sahitya ke Nirmata Anandghan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherSahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy