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________________ आनंदघन का पद-वैभव : 27 आनंदघन तो यहाँ तक कहता है कि कोई व्यक्ति यदि इस भाँति जीने का निश्चय करे तो वह अमर हो जाता है । महात्मा गाँधीजी को भी प्रिय इस प्रार्थना को 'आश्रम भजनावलि' में स्थान मिला था ।' इस पद का भावलालित्य और उसकी मर्मस्पर्शिता कुछ और ही हैं । साधक की मस्तीभरी खुमारी तो देखिए । 'अब हम अमर भये न मरेंगे, या कारण मिथ्यात दीयो तज, क्युं कर देह धरेंगे ? राग दोस जग बंध करत है, इनको नास करेंगे, मर्यो अनंत कालतें प्राणी, सो हम काल हरेंगे. २ देह विनाशी हं अविनाशी, अपनी गति पकरेंगे, नासी जासी हम थिरवासी, चोखें हैं निखरेंगे. ३ मर्यो अनंत बार बिन समज्यो, अब सुख दुःख विसरेंगे आनंदघन निपट निकट अक्षर दो, नहि समरे सो मरेंगे.४.28 अब हम मध्यकालीन साहित्य में आनंदघनजी के पदों के वैशिष्ठ्य की चर्चा करेंगे । वे विषय-वस्तु का आरंभ बड़े अनूठे ढंग से करते हैं । प्रथम पंक्ति के आरंभिक शब्द ही भावक के चित्त पर आत्मानंद की अनुभवलाली बिखेर देते हैं । परंतु पद का प्रवाह जैसे-जैसे आगे की ओर बहता है, वैसे-वैसे पद में सुग्रथित रहस्य प्रकट होता जाता है । कई बार पद की अंतिम पंक्तियाँ ऐसा रहस्य खोल देती हैं, कि पद कुछ अलग ही अनुभव-आलोक से आलोकित हो जाता है । यही कारण है, कि आनंदघनजी के पद अपनी मधुरता के कारण मस्तजनों के कण्ठहार बन गये हैं । तो दसरी ओर पद की अंतिम पंक्तियों की चमत्कृति के कारण भावक या साधक उसका आस्वादन करने के लिए पुनः पुनः प्रेरित होते हैं। इनके पदों में गजब की संगीतात्मकता है, जिन्हें अत्यंत सरलता से गाया जा सकता है । मनोहर रागरागिनियों में बद्ध इन पदों में ताल, लय और छन्द का अद्भुत सामंजस्य है। कवि अपने पदों में कहीं आलंकारिक रूपक शैली का प्रयोग कीया हैं, तो कभी चातक, मृग, साँपिन (नागिन), हारिल पक्षी, बँजन, गजराज, गर्दभ जैसे पशु-पंनियों के विशिष्ट लक्षणों के जीवंत दृष्टांतों द्वारा या फिर सूर्य, वसंत जैसे प्राकृतिक तत्त्वों की बात द्वारा या फिर शतरंज अथवा गंजीफा (तास) जैसे खेलों के उदाहरणों द्वारा अपनी बात को सहज स्वाभाविक ढंग से अभिव्यक्त करता हैं । इनकी सानियाँ भी उतनी ही मार्मिक हैं । साधक के लिए तो आत्मसाक्षात्कार की महिमा ही सर्वस्व है। जैसे कि 70 वें पद की साखी में धर्म औदार्य और विशाल दृष्टि दोनों दृष्टिगत होती हैं । कवि कहता है - 'आतमअनुभन्न रसकथा, प्याला पिया न जाय, . मतवाला तो ढहि परे, निमता परे पचाय.'29 आत्मानुभव की कथा का प्याला पीते पीते मताग्रही लोग तो गिर पड़ते हैं । मताग्रहविहीन निर्ममत्वी ही उसे पचा सकते हैं। ये साखियाँ आनंदघन के पदों की विशिष्ट पहचान हैं । आनंदघन की इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003220
Book TitleBhartiya Sahitya ke Nirmata Anandghan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherSahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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