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________________ 1400 जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङ्क एवं १४ नियम भी नियमित पूर्ण शुद्ध रूप से आगार रहित धारण करके यथावत् पालन करना। ४. उपवास युक्त छ: पौषध (दो अष्टमी, दो चतुर्दशी, अमावस्या एवं पूर्णिमा के दिन) आगार रहित निरतिचार पालन करना। ५. पौषध के दिन पूर्ण रात्रि या नियत समय तक कायोत्सर्ग करना। ६. प्रतिपूर्ण ब्रह्मचर्य का आगार रहित पालन करना। साथ ही ये नियम रखना- १. स्नान त्याग २. रात्रिभोजन त्याग और ३. धोती की एक लांग खुली रखना। ७. आगार रहित सचित्त वस्तु खाने का त्याग। ८. आगार रहित स्वयं हिंसा करने का त्याग। ९. दूसरों से सावध कार्य कराने का त्याग अर्थात् धर्मकार्य की प्रेरणा के अतिरिक्त किसी कार्य की प्रेरणा या आदेश नहीं करना। १०.सावध कार्य के अनुमोदन का भी त्याग अर्थात् अपने लिए बनाए गए आहारादि किसी भी पदार्थ को न लेना। ११. श्रमण के समान वेश व चर्या धारण करना। लोच करना, विहार करना, सामुदायिक गोचरी करना या आजीवन संयमचर्या धारण करना इत्यादि का इसमें प्रतिबंध नहीं है। अत: वह भिक्षा आदि के समय स्वयं को प्रतिमाधारी श्रावक ही कहता है और ज्ञातजनों के घरों में गोचरी हेतु जाता है। आगे-आगे की प्रतिमाओं में पहले-पहले की प्रतिमाओं का पालन करना आवश्यक होता है। सप्तमदशा भिक्षु का दूसरा मनोरथ है "मैं एकलविहारप्रतिमा धारण कर विचरण करूँ" भिक्षुप्रतिमा भी आठ मास की एकलविहारप्रतिमा युक्त होती है। विशिष्ट साधना के लिए एवं कर्मों की अत्यधिक निर्जरा के लिए आवश्यक योग्यता से सम्पन्न गीतार्थ (बहुश्रुत) भिक्षु इन बारह प्रतिमाओं को धारण करता है। प्रतिमाधारी के विशिष्ट नियम १. दाता का एक पैर देहली के अन्दर और एक पैर बाहर हो। स्त्री गर्भवती आदि न हो, एक व्यक्ति का ही भोजन हो, उसमें से ही विवेक के साथ लेना। २. दिन के तीन भाग कल्पित कर किसी एक भाग में गोचरी लाना और आहार ग्रहण करना। ३. छ: प्रकार की भ्रमण विधि के अभिग्रह से गोचरी लेने जाना। ४. अज्ञात क्षेत्र में दो दिन और ज्ञात-परिचित क्षेत्रों में एक दिन से अधिक नहीं ठहरना। ५. चार कारणों के अतिरिक्त मौन ही रहना, धर्मोपदेश भी नहीं देना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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