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________________ प्रज्ञापना सूत्र : एक समीक्षा 277 प्रज्ञापना सूत्र के व्याख्या ग्रंथ प्रज्ञापना सूत्र की अनेक प्राचीन ताड़पत्रीय तथा कागज पर लिखी हस्तलिखित प्रतियां उपलब्ध होती हैं। श्री शांतिनाथ ताड़पत्रीय जैन भण्डार खंभात तथा जैसलमेर के जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार में विक्रम की १४वीं सदी की ताड़पत्रीय प्रतियां उपलब्ध होती हैं तथा विक्रम की सोलहवीं सदी की कागज पर लिखी प्रतियां भी मिलती हैं। समय-समय पर आचार्यों ने प्रज्ञापना पर अनेक व्याख्याएं भी लिखी हैं, जो सूत्र को सुगम बना देती हैं। उनमें से निम्न व्याख्याएं आजकल उपलब्ध होती हैं -- 1. प्रज्ञापना प्रदेश व्याख्या- इसके कर्त्ता भवविरह हरिभद्रसूरि (समय ई.सं. ७०० से ७७०) है। प्रज्ञापना के अमुक अंशों का इसमें अनुयोग है। 2. प्रज्ञापना तृतीय पद संग्रहणी तथा उसकी अवचूर्णि- आचार्य अभयदेव (सं.११२०) ने तीसरे अल्पबहुत्व पद संग्रहणी की रचना की है तथा इस पर लिखी एक अवचूर्णि भी उपलब्ध होती है। इसके कर्ता कुलमंडन सूरि ने संवत् १४४१ में इसकी रचना की है। 3. विवृति (टीका)-आचार्य मलयगिरि ने संस्कृत भाषा में प्रज्ञापना पर विस्तृत व्याख्या लिखी है। लेखनकाल सं. ११८८ से १२६० के बीच का है। सम्पूर्ण प्रज्ञापना सूत्र को समझने में प्रमुख आधारभूत यह टीका है। 4. श्री मुनिचन्द्रसूरि (स्वर्गवास सं. 1178) कृत वनस्पति विचार-- ७१ गाथाओं में प्रज्ञापना के आद्य पद में आयी हुई वनस्पतियों पर विचार किया गया है। इस पर एक अज्ञात लेखक की अवचूरि भी है। 5. प्रज्ञापना बीजक-हर्षकुल गणी ने लिखा है। प्रति पर लेखन संवत् १८५९ लिखा है। 6. श्री पद्मसुंदर कृत अवचूरि- यह अवचूरि पद्मसुंदरजी ने मलयगिरि टीका के आधार पर रची है। इसकी हस्तलिखित प्रति सं. १६६८ में लिखी हुई मिलती है। 7. श्री धनविमलकृत टब्बा- रचना सं. १७६७ 8. श्री जीवविजयजी कृत टब्बा- रचना सं. १७७४ 9. श्री परमानंद जी कृत स्तबक-रचना सं. १८७६ 10.श्री नानचंदजी कृत संस्कृत छाया-प्रज्ञापना का संस्कृतानुवाद है। अनुवादकर्ता श्री नानचंद जी म.सा. ई. सं. १८८४ में विद्यमान थे। 11. अज्ञात कर्तृक वृत्ति 12. प्रज्ञापना सूत्र भाषांतर-पं. भगवानदासजी हरखचन्दजी द्वारा 13. प्रज्ञापना पर्याय- कुछ विषम पदों के पर्याय रूप है। इनमें से क्रम संख्या १,२,३,१० व १२ की व्याख्याएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके अलावा प्रज्ञापना सूत्र पर हिन्दी व गुजराती में अनेक भाषान्तर व विवेचन प्रकाशित हुए है। जिनमें श्री अमोलकऋषिजी म.सा. कृत आगम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003218
Book TitleJinvani Special issue on Jain Agam April 2002
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2002
Total Pages544
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Canon, & Agam
File Size23 MB
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