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________________ इसप्रकार तीन नगरों से मिलकर बने होने के कारण वैशाली' को प्रसंगानुसार उन तीनों में से चाहे जिस किसी के नाम से पुकारा जाता था। बौद्ध-परम्परा में भी वैशाली के जिलों का उल्लेख है। वैशाली दक्षिण-पूर्व में कुण्डलपुर (कुण्डग्राम), उत्तर-पूर्व में वाणिज्य-ग्राम तथा पश्चिम में कोल्लाग' नामक सन्निवेश था, उसमें अधिकतर ज्ञातृ-क्षत्रियों की बस्ती थी। इसीलिए उसे 'नाय-कुल अर्थात् ज्ञातृवंशीय क्षत्रियों का घर (कोल्लाए संनिवेसे नायकुलंसि) कहा जाता था। इसी कोल्लाग-संनिवेश के पास ज्ञातृवंशी क्षत्रियों का 'द्युतिपलाश' नामक एक उद्यान और चैत्य था। इसे ज्ञातृवंशियों का उद्यान कहते थे। ('नाय-सण्ड-वणे उज्जाणे' अथवा 'नाय-सण्डे उज्जाणे') 'आचारांग' में उत्तर-क्षत्रिय-कुण्डपुर सन्निवेश अथवा 'दक्षिण-ब्राह्मण-कुण्ड-सन्निवेश के दो भाग आये हैं; जिसमें उत्तरीभाग में क्षत्रिय (सम्भवत: ज्ञात) और दक्षिणी-भाग में ब्राह्मणों की बस्ती थी। कल्पसूत्र' में 'क्षत्रिय-कुण्ड-ग्राम-नगर' और 'ब्राह्मण-कुण्डग्राम-नगर' ऐसा उल्लेख है। इसका अभिप्राय भी हमें पूर्व-वर्णित कुण्ड-ग्राम' नगर का उत्तर का क्षत्रिय-विभाग और दक्षिण का ब्राह्मण-विभाग ध्वनित होता है। तिब्बत से प्राप्त ग्रन्थों में बुद्धकालीन वैशाली में सोने के कलशवाले सात हजार महल और चाँदी के कलशवाले चौदह हजार महल तथा तांबे के कलशवाले इक्कीस हजार घरों का उल्लेख है। इन तीन पृथक्-पृथक् महलों में अनुक्रम से उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ कुलों के लोग रहते थे। इसका आभास 'उपासक-दशांग सूत्र' में हमको मिलता है। ___ हमने पीछे बताया है कि बुद्ध को वैशाली बहुत प्रिय थी। ‘महापरिनिव्वाण सुत्त' में लिखा है कि बुद्ध जब अपने जीवन में अन्तिम बार वैशाली से चले, तो बारम्बार पीछे फिर-फिर कर नगर की ओर देखने लगे। (नागापलोकित वैसालीयं अपलोकेत्वा) उस समय उन्होंने आनन्द से कहा था कि “आनन्द, इस बार तथागत वैशाली को अन्तिम बार देख रहा है।" जब बुद्ध के दर्शन के लिए लिच्छवि सजधज कर वैशाली से निकलते थे, तब उन्हें देखकर एक बार बुद्ध ने कहा था “हे भिक्षुओ! तुमने देवताओं को तो अपनी नगरी से निकाल कर उद्यान में आते हुए कभी नहीं देखा। परन्तु इन वैशाली के लिच्छवियों को देखो, जो समृद्धि और ठाठ-बाठ में इन देवताओं के समान हैं—सोने के छत्र, स्वर्ण-मण्डित पालकी, स्वर्ण-जटित रथ और हाथियों सहित ये लिच्छवि देखो, आबाल रंगरंजित वस्त्र धारण किए हुए सुन्दर वाहनों पर चले आ रहे हैं।" एक बौद्ध-ग्रन्थ में लिखा है कि “यह वैशाली महानगरी अतिसमृद्ध सुरक्षित, सुभिक्ष, रमणीय, जनपूर्ण, सम्पन्न गृह और हर्यों से अलंकृत पुष्पवाटिकाओं ओर उद्यानों से प्रफुल्लित मानों देवताओं की नगरी से स्पर्धा करती है।” भगवान् महावीर का जन्म वैशाली में हुआ था, यह हम कह चुके हैं। तीर्थंकर होने के बाद उन्होंने बयालीस चातुर्मासों में से बारह वैशाली में व्यतीत किए थे। ___ यह 'वैशाली वर्तमान 'तिरहुत' में मुजफ्फरपुर से कुछ दूर, राजगृह से कोई 40 कोश के अन्तर पर थी। प्राकृतविद्या-जनवरी-जून '2002 वैशालिक-महावीर-विशेषांक 1095 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003216
Book TitlePrakrit Vidya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain, Sudip Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2001
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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