SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 617
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वि० सं० ८३७-८६२] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ६-जाबलिया-यह नाम हंसी मस्करी या उपहास में पड़ा है। इस जाति में मुत्सद्दी एवं व्यापारी बड़े २ नामी नररत्न हुए हैं। मेरे पास जो वंशावलिये वर्तमान हैं उनका टोटल लगाकर देखा गया तो ३६१--जैन मन्दिर बनाये जीर्णोद्धार कराये । ८१-धर्मशालाएं बनवाई। ८५-बार संघों को निकाल कर तीर्थ यात्रा की। १०१-बार श्रीसंघ की पूजा कर पहिरावणी दी। ६-आचार्यों के पट्ट महोत्सव किये । ३-बार दुष्काल में शत्रुकार खुलवाये । इस जाति की वंशावलियों में वि० सं० १६०५ तक के नाम लिखे हुए हैं। ऊपर जिन सत्कार्यों एवं धर्मकार्यों का उल्लेख किया गया है वह एक ग्राम या कुटुम्ब के लिये नहीं अपितु इस जाति के तमाम धर्मवीरों के लिये जो मेरे पास की वंशावलियों में हैं लिखे गये हैं। एक समय आचार्यश्री अनुदाचल की ओर बिहार कर रहे थे तो एक गिरिकन्द्रा के पास देवी के मन्दिर में बड़ा ही रव शब्द हो रहा था उन्होंने सुनकर अपने कतिपय शिष्यों के साथ वहाँ गये तो कई बकरों को काट रहे और बहुत से बकरे भैंसे थर थर काम्प रहे थे। सूरीजी ने उस करुणाजनक दृश्य को देखकर बड़े ही निर्डरता पूर्वक उन लोगों को उपदेश दिया। बहुत तर्क वितर्क के पश्चात् राव विनायक पर सूरीजी के उपदेश का कुछ प्रभाव पड़ा और उसने हुक्म देकर शेष बकरे भैंसों को अभयदान पूर्वक छोड़ दिये । जब एक मुख्य सरदार पर असर हुआ तो शेष तो बिचारे कर ही क्या सके ? राव विनायक सूरिजी से प्रार्थना कर अपने ग्राम भंभोरिया में ले गये । सूरिजी ने भी लाभालाभ का कारण जान वहाँ पर एक मास की स्थिरता करदी और अहिंसामय उपदेश देकर राव विनायक के साथ हजारों क्षत्रियों को जैन धर्म की शिक्षा दीक्षा देकर जैन बना लिये । राब विनायक ने अपनी जागीरी के २४ ग्रामों में उद्घोषणा करवादी कि कोई भी लोग बिना अपराध किसी जीव को नहीं मारे इत्यादि। राव विनायक ने अपने ग्राम में भगवान पार्श्वनाथ का मन्दिर बनाकर समयान्तर आचार्य देव के करकमलों से प्रतिष्ठा करवाई। पट्टावलीकारों ने इस घटना का समय वि० सं० ६३३ का लिखा है तथा श्रापकी वंशावली भी लिखी है। राव विनायक सं०६३३ माधव सोमदेव तोड़ो कोलो ( इन सबकी बंशावलियाँ विस्तार से लिखी हैं) राजधर चमुडराय लाखण मालो (व्यापार में) (शत्रुञ्जय का संघ) | दो रागी क्षत्री पुत्री उपकेशवंश कन्या मुंजल रावत (शत्रुञ्जय का) भोजो रावल साल्ह जोगड़ सोहरण (व्यापार) (महावीर मंदिर) १३४६ Jain Education international विनायकिया जाति की उत्पत्ति For Private & Personal Use Only ainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy