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________________ वि० सं० ७७८-८३७] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास अलका नगरी जिह रीत स्वरी, अठवीस बबाकरीलोभ धरी । वाहड़मेर १७ जेठू, दीपनगर १७ हरचन्द नाहटो, नागोर तस नारी वसै बहु सुख करी दुःख जाबे न पासै सुदूर टरी ॥ १९ नरहर सिंघवी, नागोर २० डूंगरसी, मांडवनगर, पाप त्रिय सुन्दर ओपम कुल कली. कना मयसं उतरी बिजली । फोफलीया २१ डोसी सजो पोरवाल, जायलवाल २२ कोठारी मुगताम्बर जेम चले, पधरं, बहुरूप भलो मनुकाम हरं ॥ रिणधीर, मेडते ९३ राजसी लोढ़ो मेडतै २४ अमेचौ हरषौ, सुर सुन्दर जेठ सहोदर छै, लघु ऊपल राव जोधार भछै । मेडते २५ तेजपाल वस्तपाल, जात पोरकाल २६ विमलशाह सुरसुन्दर लोक में भीम गया पधरा, आबू ऊपर कमठाणा कराया २७ गाधइयो भैर परथासै वास. भीन्नमाल को राज बडो जुकरा ॥ | पाटण २८ बधमान, वास नवै नगर २९ लोलण, अमरावत पुन दोव सहोदर मित्र भला, सम रूप मयंक सुधार कला । ३० श्रीमाल आसकरण, नाथावत ३१ वांठियो तेजपाल, नलराजमनमथ रूप जिसा, महिगंण अथांग सोभाय इसा॥ वास भुजनगर ३२ श्रीमाल दिल्ली में ३३ शिरदारमल पैमो किरणाल तपै पुन भाग भलं, अरिदूर भजै इक आप चलं । नै रस्नौ ३४ भारमल, वास वैराट देश ३५ सामीदास रेवंतजी नगराज उदार दीपंति खरा, किल छात पँवार मुगट धरा ॥ रो, वास तिजारै ३६ अषौ चोपड़ो, वास संत्रावै २७ भासदोहा। करण मेडतै ३८ होलो धनावत, पाप वागरेचा ३९ साहे द्ग मांहि मंत्री तणा बेटा दोय सरूप । मौवास चौकड़ो, षांप पोहकरणो ४० आसकरन, नवेनगर वही दुरग मांहि रहै रुपिया कोड अनूप ॥१॥ ४१ नालसा, मेवाड़ ४२ करमो डोसी सात बीसी ध्वजा महर माहि छोटो वसै लाख घाट छै कोड । सेजे चाढ़ी ४३ पासवोर नाहटो ४४ लोढ़ो गोसल इग्यावडै भ्रात ने इस कहै करु कोडरी जोड ॥२॥ डोतरे काल म अन्न दियौ ४५ डागौ रतनसो वयासिये एक लाख देवे खरा दुरग वसू हूँ आय । डिगती प्रजा थांभी ४६ माडूगढ़, सांड कोडियौ म्हौर लायण बलती भोजाई कहै वचन सुनो चित लाय ॥३॥ | मुल्क में दीवी ४७ सोनी भीमवास, पाटण १८ सोपुर, देवरजी सुणज्यो तुम्हें किसो कोट छै सून । भूमोसाह पौल पखाह म्हौर दीनी ४९ पाल्ही; कुभलमेरे ५० या विण आयां ही मरे, रखो ये अब मून ॥४॥ मेडतै, मेघराज ५१ हेमराज, नागोर ५२ वलराज अजू, बड़ऊ धरण बखाणिये छोटो ऊहड जाण । अजमेर ५३ गोपचन्द, दिल्ली जे नियो छुड़ायो ५४ साह उठीयो बचन सुणी करी, लघु बंधव हरिरांण ॥५॥ तालो पीपाड़ ५५ हेमौताम्हारी, पीपाड़ ५६ सिरदारमल कोप अंग तिण बेल घण को बसाउ द्रंग । सुराणो, वास जयतारण ५७ केलराज चौहोत्तरे अन्न दे प्रजा एम कही आयो सहर बहुलो पोरस अंग ॥ थांभी ५८ बहत्तर पाल. मेवात मे अन दियौ ५९ ठाकुरसी उपलने वासै जइ वदे पाठली बात । १० भरंमल वैरार हुवौ घोड़ा दोयसौ इकीस दिया ६१ भोजाई मोसो दियो सुवाली मुज तात ॥७॥ केसव धांधियो ६२ वसतपाल वास दादरी ६३ गंजवगस ओसवालों में दातार हुआ तिणारा नाम गैलडो, आगरै ६४ राममल हरषारौ अकबर कनै ६५ श्रीमाल १जगडू सोलावत, पाप रांका २ सारंग, वास सौरठ ३ | अंचलदास, वास अमरसा ६६ वौहरौ बपती, देवारी ६७ करमचन्द मुहती वछावत, सांगैरो ४ भोमौ का वडियो, वास घेबरी सीह माळ ( श्रीमाल ) ? वांस चाटसू ६८ हीरानन्द चीतोड ५ सूरोगुरु हडियो नग्भवतः वास आकोले ६ जगडल- साहरै, पाससाह जहाँग र घरे आयो ६९ इतरा आगरे, वले लवाणी, जोधपुर ७ हीरजी संघ वाले चौ, जोधपुर ८ लोढ़ा हुवा दूर्जण चंदू नेमिरास नाण जी ७० राजसी; अमी; भैरुदास ९ नै मो, अलवल गढ़, ( मेवाड़ में) इत आगर, शेव्रुजै सिंघ कियौ ७३ भासकरन अमीपाल, चोपड़ा ७२ हुभा .. श्रीमाल हीरानन्द ११ लोढ़ा कवरौ नसुनपाल पेतसी, भोजावत, षांप भीमाल ४३ शाह हरषौ नाणजौरी (?) तेजसो बरहडियो अकबर पातसाह मानियौ १२ मुंहतो ७४ नाणजी पूरख में हुवौ हाथी दान किया ७५ पोरवाल रायमल बैद, सोझत १३ मालोर, लोढ़ौ हमीर १४ भीनमाल, चापसीदास, वास पट्टमै ७६ श्रीमाल तोतराज ७७ श्रीमाल लोलो १५ श्रीमाली पदराज, नगरथटे १६ वींजो पारष, । जसराज, वास खम्भायच । १३२० Jain Education International महाजन संघ के प्राचीन कवित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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