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________________ आचार्य कक्कसूरी का जीवन | वो जोनपुर भरहा ढोर जानि पाँगी पथ वाघ मुखाक्षका, अरधान मांन रस्तगि हुये, मीठीया कहूँ महिपालका, अधिकारी टाळन धांधीया, जस पल्हवड राजपाल का, ब्रिती भैरू मा परगटे, मेवात बहतरि पालका, गोल्छा सारग समरथ साह, तांबी मेघ प्रनाल का, वर्णा विरद अब संकिपाण तिस ऊपरि हठी हठाक था, नचित्रज तेरा भारमल अभीच जनम अरिसाल का, ममैवासी को जेर चढि गिर सुधा सुरताल का, जगि उपरि बलि विक्रम जिसा, दाखिर कल्पा जंजाल का राजा रोडरमल शुं प्रति ज्यों सरवर मांन मगल का, + + + + साचा गुन खेते का, संवत सोळा तालका । हुकमज अकबर पातिसाह परताप जो भारहमाउका ॥ ओसवाल भोपालों का रासा ( चाल चौपाई ) । । २ ॥ शारद मात नभू शिरनामी कवियों की तँ अंतजमी विणा पुस्तक धारणी माता | हंस बाहनि वयण वर दासा ॥ १ ॥ बारह न्यात बली चौरासी । ओसवाल सब में गुण रासी रास भणु मन घरी उल्टा जाति नामक कर प्रकाश ॥ पार्श्वनाथ वर उट्टे पट्टाम्बर स्वप्रभसूरि सूरिवर आवे मरुचर देश मझारी उएश नगरे उस विहारी ॥ ३ ॥ शिष्य पांचसी थे गुणवन्ता माउ दोमास तप आचरंता कोई नहीं पुच्छे न अन्नपाणी | ज्ञान ध्यान तपस्या मन ठाणी राय जमात अही विष ग्रह्यो । सूरि समीप लाइने धर्यो || चरण प्रक्षाल लटकावे । तत्क्षण कुंवर सचेतन थावे ॥ ५ ॥ राजा मंत्री नागरिक सारा । गुरु उपदेश शिर पैधा । सात दुर्व्यसन दूर निवारी सवाल सख्या नरनारी ॥ ६ ॥ जिनके गोत्र प्रसिद्ध अठारा खातेदा कर्णावट सारा वलाह गोत्र की शंका शाखा । मोरक्ष ते पोकरणा लाखा ॥ ७ ॥ विरहट कूलर मे श्री श्रीमाल संचेती श्रेष्टि उजमान | आदित्यनाग चोरड़िया वाजे । भूरि भाद्र समदड़िया गाजे ॥८॥ चिंच- देसरड़ा कुम्ल्ट भेटी । कनौजिया डिडु लघुश्रेष्टि ॥ चर गोत कांकरिया आखा । लुंगगोत चंडालिया शाखा ॥ ९ ॥ सुघड़ दूधड़ ने घटिया गोत । ऐता आदू भोसवंश उद्योत । महाजन संघ थाप्यो गुरुराय । दिन दिनवृद्धि अधिकी थाय ॥ १० वीर संवत् के थे सीतर वर्ष । अपूर्व था उस संघ का दर्श महाजन संघ के प्राचीन कवित Jain Education International | ओसवाल सं० १९७८-१२३७ I अमर यशः सूरीश्वर हिनो धर्म कलि में स्थिरकर दिनो ॥ ११ ॥ आर्य छाजेड़ राखेचा काग गरुड़ सालेचा चरो जिन माग । घाघरेचा कुंकुम मे सफला । नक्षत्र आभड़ बहुरी कला ॥ १२ ॥ छत्त वाघमार पिण्डोडिया धुड़ियों ने शुभ कार्य किया । मंडोवरा मल गुदेवा जाण । गच्छ उएश ऐते पहचान ॥ १३ यद जिम शाखा विस्तरी गणती तेनी को नहीं करी । भानुं ताप प्रचण्डमध्यान्द महाजन संघ को बडियो मान १४ तप्तभट्ट तातेड़ कहलाया । तोडियाणी आदि मन भाया ॥ बावीस शाखा बिस्तरी भाग्य रवि ने उन्नति करी ॥ १५ ॥ बाप्पनाग प्रसिद्ध बाफना नाहरा जंगड़ा वैताळा घणा ॥ पटवा वालिया ने दफ्तरी बावन शाखा विस्तारी ॥ १६ ॥ करणावट की सुनिये वात जिनसे निकली चौदह जात ॥ वाह वास वलभी करे। शिलादित्य राजा से अटे ॥ १७ ॥ कांगसी ने उत्पात मचायो । वल्लभी को भंग करायो ॥ शंका बांका नाम कमायो जाति रांका सेठ पद पायो ॥ १८॥ छवीस शाखा पृथक कही । समय उन्नति को मानो सही ॥ मोरक्ष गोउ पोकरणा आदि । सत्तरा शाखा भाग्य प्रसाद्धि ॥ १९ ॥ कुलट शाखा सूरक्षा कमी जाति अठारह प्रकट हो जागी। विरहट गीत भुइँयादि सत्तरे । यह जिम शाखाएं बिसरे ||२०| श्रीश्रीमालो ने सोनो पायो । मान राज से मिलियो रूवायो । निलडियादि बावीस जात । शुभ कार्यों से हुई विख्यात ॥२१॥ राव उपलदेव ने नाम कमायो श्रेष्ठिगीत वैद्य मेहता पद पायो | माला रावतादि एकतीस श्रेष्ठ काम करते शिसि ॥२२॥ सुचंति शुभ सूचना करे। संचेती हिंगड़ नाम ज धरे ॥ शाखा तेतालीस निकली । उन्नति में सत्र फूली फली ॥ २३ ॥ 1 अदित्यनाग था पुरुष प्रधान । प्रकट हुआ था नवनिधान ॥ धर्म तणो किनो उद्योग महाजन संघ में जागति जोत ॥ २४ ॥ चोरड़िया गुलेच्छाजात पारख गाड्या सुप्रभात || सामसुखा ने वृचा आदि चौरासी शाखा है प्रसादि ॥ २५॥ बूच्चा । श्रीसवंश में नाम कमायो । विस्तार पायो संघ सवायो || इस गोत में भैसा शाह चार । जिन कि महिमा अपरंपार ॥ २६॥ भूरि गोत भटेवरा लाखा । विस्तरी बड़जिम वीस खा ॥ भाद्र गोत समदडिया नाम । गुणतीस शाखा वड़िया काम ॥ २७ ॥ चिचट गोत देसरडा जागो। उन्नीस जाति सुकाम प्रमाणो ॥ कुम्मट शाखा काजलिया परे । बीस जाति सेवा शिर धरे ॥ २८॥ डिब्रू गोत फीचर प्रमाण । तेवीस शाखा शुभ कार्य जाण ॥ For Private & Personal Use Only १३१५ www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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