SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 584
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य कक्कसूरि का जीवन ] [ओसवाल सं० ११७८-१२३७ विहंग गुणरस राम दान संबंध सोहे दिशा । पत्त धरे छत्रपति माया करे तुझ पाण। साहादर सतपर छेह जान रिध कारजगावशा ॥ दीवाणरे सिर सरोवर मांडे सतीदास ॥ हरदास कहे महाराजरो व्यापक वचन उच्चरे । बड़ा लखारारी रीत मीढ़ ओपे बड़ालाजु । तागीया तिलक सहुतणा तेजपाल रणथंभ तरे ॥ तेगधारी बड़ी कहाके वासरे तौल । + + + नीर रा चढ़ाउ नरसिंह राउ दे नेम । नवसोने बाड़ीतरे गढचट कोइ न भायो गाज । बहादरातों जैहा करबाजे रहे बोल ॥ विषमी वार संचेती बदिया हाप्यो तो फावियो हरराज ॥ वाद बदी हाथियों सेठ लाटली कौन वैदें। मारवाड़ मेवाड़ सिन्ध धर सोरठ सारी । सारी समागलाजी हाँ हूँ चकै किसी बल ।। कारनीर कांगरू गौड़ गिरनोर गन्धारो ॥ दी ठोउ वे राज हरो सार सोधी वाण उगे। अलवर घर आगरी छटा भाखरपुर थाणे । जाजमा रू वैजोर वस रोउ जाल। पूर्व उत्तर पश्चिम दक्षण घरा पार आंगणे ॥ मती जोध भाणं अचल कचरारी जोर कहे। नरलोग कोई पजिया नहीं समवड़ थारी सारखो । माइदास बखतेरू सपतु संबन्ध ॥ चन्द्रमाण नाम युग युग भवचल यह पलटे धन पारखे ॥ जोधु वधु आपु माइ दास हुकमचंद जौ रहै प्रताप धरा ॥ कवित मारूजी संचेतीरो बलाह रांक झालरो गीत षितपुगढ़ मालमखेत प्रसद्ध सायर मेहा। कटी लटी करवाल अस चढ अवनी चाले । छहड़ जीम बात्तत नाम जन्दराज वेहा ॥ रायभक्त रण चढी रिपदल भक्षण काले ॥ धन कालु धनराज तोल आदू जत विजै । वीडतां वीड असराल झाकाने केता झाले । मतिसागर महराज दान सहु अलख दीजै ॥ सुदृढ सुभट भट सिंदूर दुर्जन दे साले ॥ तीणपट संचेती तेजहर छत मोटी विरुदछाता। बलाह गोत बांकावरवीर रांका राव सम उद्धरे। सर्व जाण अभंग चंदभाण भूप उजलदाता ॥ कवि कल्हण जंग जीतण इला झालो जग सरासिरे ॥ कर को करपण न सके काठ का वीहतो न पातै बाथ । कुम्मट विंजारो कवित भंजा भुको कियो भैर हर हरखावत लाग्यो हाथ ॥ रव पुडरीक गणु रडवडियो वरण अठारा दीपा वरांसो। | पढ्यो इन्द्र घर काल विकराल मृतलोगे पडायो । मैक मेच होडी सोभा हितशाखा धनराज हरा ॥ बलबल करते बाल मृगणी पति न पायो । लाख घj घणुं लहसाणा लोभ्या किणही न षै टोलार । | समरे कुक्ष जननी जनक हाहा सहु को करे । भीमैतिया सुरताण सहोवर पकड़ी बाह आदि पार ॥ धन विजा त्रीय विश्व में अन्नदानधिकोकरे ॥ पहवो सुप्रसिद्ध नयर मोखोणो अवचल । शव रंक सरिखा भया आवे विजा द्वार पे। केसीपुरी पोकरणि शाख सुखा सुनिश्चल ॥ प्राण रखो पृथ्वी ग्रहो अमर नाम संसार पै ॥ तस सुत गोशल कल्पवृक्ष अविचल जम छाजै । ॥ओसवाल ज्ञातिनो रासो ।। खीमेड़ियो गढ़ कलहसिं जुडील गल गाजै॥ सोह वधौ संसार सीर, इल राखण इखियात; पीथड़ सिखरो प्रगट नर सुकविगंद समुच्चरे । नखिन अभीच निमंधियो निज उजलावण न्याति ॥ पग्विजा सयण खीवराजरो धनराज सहसीरे ॥ जहां साढीबाहर न्याति सराहा श्रीमाली वोसवाल सवे । डीडू, बघेरवाल दाखी जै, चित्रावाल पलीवाल चवे ॥ जोधपुर का समदड़िया मुता सतीदास का कवित. खैखाल, नराणा, हरसौरा, जुगती जै ओपम जाणे । वादै वाजीराव जा रए हो वाजीरारै सिरै। अती ओसवाल न्याति उजालं, बधौ बडि महथ वाखाणे ॥ बाम आखीए आदि तजै हरे बहु जास ॥ पीणी पोकरवाल मणी जे, वली मेडतवाला कारमहे । महाजन संघ के प्राचीन कवित १३१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy