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________________ आचार्य कक्कसूरी का जीवन ] [ ओसवाल सं० ११७८-१२३७ स्वामीदास नंद के सरां हो हाथ हिये हे। भागे नरसिघ हवा; अंन्न दूरभखमै दीया । सबहीको सूमि अभिलःख कवि सुंदर जु ॥ रतनसीह रंगीक, प्रगट प्रासाद ज कीया ॥ नोखी के पाये केउ लाख जीव जीये है। कुलवट येह भचार दान बहु समाज दिजे । सुराणा की उदारता. वोसवंस उदिवंत किति कहुखडि भणिजे ॥ सूराणा उगम लगै, अलवेसरि उदार । सिवराज घरे सजन भगति; कहि किसनां की रतिभल । पर उपगारी कारणे: उदया इण संसार ॥ गढमल तणो गुण को निलो; ते छजमल्ल जगे भारमल ॥ उदया इण संसार महा दीसत उन्नत कर । जगडू-शाहा का महात्व, खिदरखांन दीयोमान राज काजे धुरिंधर ॥ सांवरांण परणीयो; मांड बंधीयो मंडोवर । ज दिन चणा नवेसर; रावराणा सा छंड यो । मंडोवर रे धणी; सेर नहीं दीनो सधर ॥ रेल्हण छाजूनंद; त दिन पुरिख न मनि मंड्यो । मिली कोडि मंगता, कोइ उर वोड न सके। नरसिंघ मोल्हातसो सर्यों करतब सवायो । महाजनको मोड; साह निति बारो अंके ॥ बोइथ के चोलराज आनंदे जगत जिवायो॥ मेवाड धणी मंडोवरा, येता थया अनंगमा । पूनाहल जंपक कुल इरल; करमसीह सच्चो को। जगढबे साह जिमाडिया, सऊ लाख एकणि समा ॥ बासठे समे बेरोजगढ; सूराणे सत संग्रह्यो । बेता हरो बदे खुदियालम; उपाडीये बिलसीये आथि । सोहिलशाहकों छंद. कासिब हरे कीयो कर मुकतो संचे नंद न लेगो साथि ॥ कवियण कलत्र कहे सुण कंता परहरि पोय परदेसे चिंता। जहांगीरशाह की महेमानी करनेवाला जगतशेठ दरि दिसावर मम करि तकह सइण सदाफल सोहिलमंगोहु ।। झवेरी हीरानंद. तुछ काम जे मुटा मुटा बोले; ते नर सोहिल सरि किम तुले ? मुकरयखानु पुछिया नृप नूरजहाँनी । त्यागि वार देहि मुह मोडा, दूसम समै अंन देखें थोडा ॥२॥ कब चला घर नंदके लेने महमानी?॥ असमे थोडो अंन गर्व मनाहि आंणे . कछुक महतल किजिये; हे लोक नमेरा । पंतिभेद जे करे लाहि लाहणि नही जाणे ॥३॥ कियो अखा घर देखिये हीरानंद केरा ॥ ढिल मंडली मेवात करे संघ मांहि हित भंता । क्या मे नौसरखांनंदी क्या लोकातोइ ? । मंगिणहारा बेसि; सरस अति घाले मंता. ॥ मै सोदागर साहिदी मुझइ हे बडाइ ॥ तहा रंग न रहे चोख कहि सरस चरचि दस खचि करि । बंदा पापणा जांणि के कजिये बडेरा । संसार इसा नर अक्तया, किम पुजे सोहिल सरि ॥ एक पियाला खुस करो खुसबुइ केरा. ॥ दानवीर छजमल बाफणा. मैगल घणा उमाहिया जनू बदल काले। सुपरिसो सेणिकराइ जेम सुधम निय । आपण सहिजां चलणे ते सद मतिवाले ॥ नंद मंद जिम बरखत; जाचिक जना लछि बहु दिनिय ॥ मुख अंधियारी मलीया; गलि चोर बंबाले । सपुत भांण दलपति मनोह : कहि गिरधर सोभाजगि लिनिय। दिढ गाढे बहु जीतणे; गढ कोटावाले ॥ २० बंदे आसकरण आचारिज; करणी अजब स करमण किंनिय ॥ सुछ नभित्र सुछत्र, सीसकर चउर ढलं दे। उतपति भोयस थान; साख बापर्णा संकज नर । साहिजादे संग उबरे; सब पायपुलंदे ॥ सांगानेर मझारिकियो जिन प्रासाद उच कर॥ मुखमल अर जलबार दी पायंदाज बिछाया । ओसवाल भुवाल साइ भेरू घरि सुंदर । जहांगीर से पातिसाहनुं ले घरि माया ॥ २७ प्योहथहरा सुचाइ, बंधव छजमल उनत कर ॥ धरोया हीरा पेस सुण्या दिठा नहुनेरा। प्रतिष्ठा करे श्री जिन तणी कहे धनोजी तब जीयो । हुणकया भाषां लाख ते; कीमति अधिकेरा। स्यागियां तिलक ठाकुर तणे करमचंद जगि जस कीयो ॥ येक जीह केसे क णती जो भाया। ANMAmAAN महाजन संघ के प्राचीन कवित १३८७ www.sinelibrary.org Jain Education Intem For Private & Personal Use Only
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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