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________________ वि० सं० ७७८-८३७ ] दृष्टि धनपाल पर पड़ी और कहा कि तुमको भी कुछ कहना है ? इस पर धनपाल ने कहा रसातल यातुयदत्र पौरुषं क्व नीतिरेषा शरणो ह्यदोषवान् । निहन्यते यवालिनापि दुर्बलो ह हा ! महाकष्टमराजकं जगत् ॥ [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ऐसा पौरुष पाताल में जाओ। ऐसा कौन सा न्याय है कि अशरण निर्बल प्राणियों को बिना अपराध ही मार डालना । मेरी दृष्टि से तो कोई न्यायी राजा हीं नहीं है । एक समय नवरात्रि में गौत्रदेव की पूजा के लिये सौ बहरो को एक ही घाव में राजा ने मरवा डाले । पास में रहने वाले लोगों ने राजा की प्रशंसा सुनी पर पं० धनपाल ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि ऐसे जघन्य कार्य करने वाले अपने लिये नरक के द्वार खुला करते हैं और प्रशंशा करने वाले भी उन्हीं के साथ में । । एक समय महादेव के मन्दिर में पवित्रारोह का महोत्सव चलता था आया । राजा ने कहा—धनपाल ! तुम्हारे देव का कभी महोत्सव न होने से वे धनपाल ने कहा- पवित्र देव तो अपवित्र को पवित्र बना देता है । फिर पवित्र देव के लिये पवि करके उनको पवित्र बनाया का महोत्सव कैसे ? आपके देव अपवित्र हैं अतः पवित्रता का महोत्सव जा रहा है। शिव में अपवित्रता होने के कारण ही उसके लिंग की लोग पूजा करते हैं । वक्षं सब के साथ राजा भी अपवित्र ही मालूम होते हैं। हास्य बदन, रति युक्त, व ताली बजाने के लिये उध्व हस्त कामदेव की मूर्ति देख राजा ने पं० धन पाल को पूछा कि यह कामदेव क्या कह रहा है ? सिद्ध सारस्वत पडित धनपाल ने कहा स एष भुवनत्रय प्रथित सयमः शंकरो, विभर्ति वपुषाऽधुना विरह कातरःकामिनीम् । अनेक किल निर्जिता क्यमिति प्रियायाः करं करेण परिताडयन् जयति जातहतः स्मरः ॥ शंकर का संयम तीन सुवन में प्रसिद्ध है पर वे विरह से कातर बन कर स्त्री को साथ में रखते हैं । इससे हास्य संयुक्त प्रिया के साथ में ताली देते हुए कामदेव जयवंत रहे । एक समय राजा भोज ने पूछा कि ये चार दरबाजे है बतला, मैं इनमें से किस द्वार से निकलूंगा १ धनपाल ने इसका उत्तर एक कागज पर लिख कर बन्द लिफाफा राजा को दे दिया। बाद में जब राजा को जाने का काम पड़ा तो वह ऊपर की छप्पर को तोड़ कर निकल गया दोपहर को जब पं० धनपाल श्राया और कागज को खोल कर पढ़ा तो वही लिखा हुआ निकला कि राजा छप्पर तोड़कर जावेगा । इससे राजा को विश्वास हो गया कि पं० धनपाल अतिशय ज्ञानी है । १२३८ Jain Education International इस प्रकार पं० धनपाल ने राजा भोज के प्रश्नों का तत्काल उत्तर दिया तथा कई समस्याएं पूर्ण की। एक दिन राजा भोज ने कहा कि तुम्हारा जैनधर्म तो सत्य पर अवलम्बि है पर जैन साधु जलाशय से उदासीन क्यों रहते हैं ? पं० ने कहा कि जल स्थानों से अनेक प्राणियों को आराम पहुँचता है पर उसके सूख जाने पर अनन्त जीवों की हानि होती है, इत्यादि । पुनः राजा ने कहा- जैनधर्म अच्छा है पर व्यव हार से कई लोगों को रुचि कर नहीं होता । इस पर धनपाल ने कहा- घृत अच्छा है पर संग्रहणी के रोग For Private & Personal Use Only महादेव कापवित्र महोत्सव www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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