SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य कक्कसूरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० ११०८-१२३७ खोजने हरिभद्रसूरि का सत्ता समय विक्रम की आठवो एवं नौवी शताब्दी के बिच का समय ठहराया है इस विषय पूज्य पन्यासजी श्री कल्याणविजयजी म. ने प्रभाविक चरित्र की पर्यालोचना में विविध प्रमाणों द्वारा चर्चा करते हुए पूर्वाक्त समय निश्चत किया है जिज्ञाषुओं को वहां से जानकारी करनी चाहिये तथा हरिभद्र सूरि समय निर्णय नामक ट्रेक्ट से अवगत होना चाहिये "दिवसगणमनर्थकं स पूर्व स्वकमभिमान कदथ्यंमान मूर्तिः ।। अमनुत स ततश्च मण्डपस्थ, जिनभटसूरि मुनीश्वरं ददर्श ॥ ३० ॥ अथ सुगतपुरं प्रतस्थतुस्ताव गणित - सद्गुरु गौरवोपदेशौ । अतिशय परि गुप्त जैनलिङ्गो न चलति खलु भवितव्यतानियोगः ॥६॥ कतिपय दिवसैरे वा पतुस्तां सुगतमत्तपतिबद्धराजधानीम् । परिकलित कलावधूत वेषावतिपठनार्थितया मठं तमाप्तो ॥ ६१॥ ज़िनपतिमत संस्थिताभिसंधि पति विहितानि च यानि दूषणा नि । निहतमतितयायतेनिरीक्षातिशयवशेन निजागमप्रमाणैः ॥ ६४ ॥ दृढ़मिह परिहृत्य तानि हेतून विशदतरान् जिनतर्क कौशलेन । सुगतमत निषेधाठ्ययुक्तान् समलिखताम परेषु पत्रकेषु ॥ ६५ ॥ इति रहसि च यावदाददाते गुरुपवमानविलोडितं हि तावत् । अपगतममुतः परेश्च लब्धं गुरु पुरतः समनायि पत्र युग्मम् ॥ ६६ ॥ उदमिषदथ बुद्धिरस्य मिथ्याग्रहमकरा कर पूणचन्द्ररोचिः । अवददथ निजान् जिनेश बिम्ब वलजपुरोनिदधध्वमध्वनीह ॥ ७० ॥ नरक फल मिदं न कर्व हे श्रीजिनपति मुद्धेनि पादयोर्निवेशः । परिशटित तेरौ वरं विभिन्नौ निज चरणौ नतु जिन देहलग्नौ ।। ७६ ॥ तदनु च खटिनी कुतोपवीतौ जिनपति विम्ब हृदिप्रकाशसत्तौ । शिरसि च चरणो निधाय या तौ प्रयत तमै रूप लक्षिनो च बौद्धौः ॥७॥ हत हत परिभाषिणस्त योस्तेऽनुपद मिमे प्रययुर्भटास्त दीयाः । अतिसविधमुपागतेषु हंसोऽवदिति तत्र कनिष्टमात्मबन्धुम् ॥९॥ व्रज झगिति गुरोः प्रणाम पूर्ण प्रकथय मामक दुष्कृतं हि मिथ्या अभणित करणान्म मापराधः कुविनयतोविहितः समपंणीयः ॥ ९१॥ इह निवसति सूरपाल नामा सरण समागत वत्सलः क्षितीक्षः । नगरमिदमिहास्य चक्षुरीक्ष्यं निकटतरं ब्रज सन्निधो ततोऽस्य ॥ ९३ ॥ अथ बहुदिन वादतो विषण्णः स परमहंस कृती विषद माधात् । प्रभाविक चरित्र का प्रमाण १२२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy