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________________ आचार्य कक्कसूरि का जीवन ] [ओसवाल सं० ११७८-१२३७ वाद बहुत दिनों तक चलता रहा पर बौद्धों की ओर से देवी बोलती थी अतः कई दिनों तक किसी की हारजीत का निर्णय न हो सका। इस पर परमहंस ने अपने गच्छ की अधिष्ठायिका देवी का स्मरण किया। देवी तत्काल उपस्थित होकर कहने लगी पर्दा हटा कर वाद करने में ही तुम्हारी विजय होगी। दूसरे दिन परमहंस ने आग्रह किया कि वाद प्रगट किया जाय । तदनुसार बौद्धों की तत्काल पराजय हो गई राजा ने भी संतुष्ट होकर परमहंस को जाने की रजा दी। जब परमहंस चला तो प्रतिज्ञा भ्रष्ट बौद्ध उनके पीछे हो गये । परम हंस खूब जल्दी चला पर एक सवार उनके समीप आता हुआ दिखाई पड़ा। दौड़ते २ एक धोबी दृष्टिगोचर हुआ तब उसके कपड़े लेकर परमहंस स्वयं धोने लगा और धोबी को आगे भेज दिया। पीछे से सवार आया और उसने कपड़े धोने वाले से पूछा कि-क्या तुमने यहां से किसी को जाते हुए देखा है ? उसने कहा-हाँ वह यहीं दौड़ता हुआ जा रहा है। जब सवार आगे निकल गया तो परमहंस वहां से चलकर सत्वर ही चित्रकूट पहुंच गया और गुरु के चरणों को नमस्कार कर मारे लज्जा के मुंह नीचा कर खड़ा हो गया कारण, गुरुकी आज्ञा बिना जाने का फल उसने देख लिया। ___थोड़ी देर के पश्चात् परमहंस ने गुरुचरणों में नमस्कार करके बीती हुई सारी हकीकत गुरु महाराज से निवेदन की । अपने सुयोग्य शिष्य हंस का बौद्धों के द्वारा मारा जाना सुन कर हरिभद्रसूरि ने शिष्य विरह की बहुत विचारणा की । निरपराध शिष्य को बुरी मौत से मारने के कारण उनको बौद्धों पर क्रोध हो पाया। वे चल कर तुरत सूरपाल राजा के पास आये । राजाने सूरिजी का यथा योग्य सत्कार वंदन किया । सूरिजी ने भी उसको धर्मलाभ रूप शुभाशीर्वाद दिया। तत्पश्चात् सूरिजी ने राजा प्रति कहा-हे शरणागत प्रतिपालक राजन् ! आपने मेरे शिष्य परमहंस को अपनी शरण में रख कर बचाया, इसकी मैं कहां तक प्रशंसा करूं ? आपके जैसा साहस करने वाला और कौन हो सकता है ? अब मैं प्रमाण लक्षण से बौद्धों का पराजय करना चाहता हूँ और इसलिये मैं आप जैसे सत्य शील न्याय प्रिय राजेश्वर के पास आया हूँ । राजाने कहा-महात्मन ! आपका कहना ठीक है पर एक तो बौद्धों की संख्या अधिक है और दूसरा वे धर्मवाद से नहीं पर बाहुबल से वितण्डावाद विवाद करने वाले हैं अतः उनके लिये कुछ विशेष प्रपञ्च रचना की आवश्यकता होगी इसीलिये मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि आपश्री के पास कोई अलौकिक शक्ति है । हरिभद्र सूरि ने कहा-नरेन्द्र ! मुझे जीतने वाला कौन है ? मेरी सहायता करने वाली अम्बिका देवी है। इस बात को सुन कर राजा ने खुश हो आपने एक चतुर दूत को पठा कर बौद्धों के नगर में भेजा और बौद्धाचार्य को कहलाया कि-श्राप तीन लोक में प्रकाश मान हैं फिर भी बौद्धमत से वाद करने वाला एक वादी मेरे नगर में आया हैं। वे वाद कर बोद्धमत को पराजय करने की उद्घोषणा भी करते हैं। इससे हम को बहुत लज्जा आती है अतः आप यहां पधार कर वादी का पराभव करें जिससे दूसरा कोई भी वादी ऐसा साहस न कर सके । इत्यादि ___ दूत वड़ा ही विचक्षण एवं प्रपञ्च रचने में विज्ञ था । वह राजा के उक्त संदेश को लेकर राजा के पास से बिदा हो वौद्ध नगर में पहुँचा और अपनी वाक पटुता से राजा के संदेश को बौद्धाचर्य के सम्मुख सुना दिया। इस पर बौद्धचार्य ने क्रोधित होकर कहा- अरे दूत ! संसार मात्र में ऐसा कोई वादी मैंने नहीं रक्खा है जो मेरे सामने आकर खड़ा रह सके । हाँ, कोई जैन सिद्धान्त का अनुसरण करने वाला वाचालवादी तुम्हारे यहां आगया हो तो मैं तुम्हारे राजा के सामने क्षणमात्र में उसे परास्त कर सकता हूँ। अरे दूत ! क्या वादी हंस का मृत्यु हरिभद्र सूरपाल की सभा में १२२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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