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________________ प्राचार्य कक्कसूरि का जीवन ] [ ओसवाल सं० ११७ -१२३७ दूं तब एक एक पट्टा करके सब पट्टे निकाल लेना । इत्यादि ॥ (कहीं पर १०८ पाट्टे भी लिखा है ) बस, वल्लभजी वगैरह ने इस बात को सब नगर में फैलादी कि कल आचार्यश्रीजी अपना चमत्कार जनता को बतलावेंगे । ठीक समय पर जनता चमत्कार देखने को एकत्र हो गई पहिले से ऊपरा ऊपरी रखे हुए ८ पट्ट पर सूरिजी आकर विराजमान होकर व्याख्यान देनेलगे इधर श्रावकों ने एक एक करके सब पट्टे निकाल लिये तथापि सूरिजी आकाश में अधर रह कर भी व्याख्यान देते रहे इस चमत्कार को देखकर कई लोग आचायश्री के परम भक्त बन जैन धर्म स्वीकार कर लिया। उनके अन्दर सोमदेव, गोविन्द, गोवर्धन, गोकुल, पूर्ण, प्रभाकर, सोमकर्ण, नंदकर्ण, शिव, हरदेव, हरकिशन, रामदास, तथा झवेरजी, धनजी, भावजी, नानाजी, माधवजी, रूपजी, गुणाजी, धरमशीजी, वर्धमानजी, विमलजी, गोविन्दजी, लालजी इत्यादि बहुतों ने जैनधर्म स्वीकार किया। एक समय सोमदेव गोकलादि सूरिजी की सेवा में उपस्थित होकर अर्ज की कि भगवन् अभी तक हमारे साथ महाजनसंघ का बेटी व्यवहार चालु नहीं हुआ है, इसकी कुछ चर्चा चल रही है तो यह कार्य जल्दी से चालू हो जाय कारण अब हम सब आम तौर पर जैनधर्म स्वीकार कर लिया एवं उसका ही पालन करते हैं इस पर सूरिजी ने वहां के नगरसेठ देवीचन्दजी को बुलाकर थोड़ा-सा इशारा किया कि अब ये विश्वास पूर्षक जैनधर्म का पालन कर रहे हैं, बस इतना-सा इशारा करते हो उन सबके साथ बेटी व्यवहार चालू कर दिया उस समय के श्रीसंघ की यही तो विशेषता थी कि वे अपने उदार हृदय से दूसरों को आकर्षित करके अपनी संख्या को बढ़ाया करते थे। और समाज पर प्राचार्यों का कितना प्रभाव था ? कि इशारा मात्र से श्रीसंघ उनका हुक्म उठा लेता था। ___ आचार्य उदयप्रभसूरि की पूर्ण कृपा से सोमदेव के पुण्योदय से इधर तो लक्ष्मी की महरबानी से द्रव्य की पुष्कलता हो गई और उधर राज से भी अच्छा सन्मान प्राप्त हुआ राजा ने सोमदेव को अपना मंत्री ( दीवान ) बना लिया और दूसरों को भी यथासम्भव राज कार्यों में स्थान देकर सम्मानित किया श्रतः राज्य में भी उनकी अच्छी चलती होने लगी। सोमदेव ने आचार्यश्री के उपदेश से भ० आदिनाथ का मंदिर बनवाया और तीर्थधीराज श्रीशत्रुजंय, गिरनारादि, का संघ निकाला, श्राते जाते सर्वत्र लेन पहरामनी भी दी स्वामीवासल्य कर श्रीसंघ के अलावा सब नगर को भोजन करवाया। संघ में प्रत्येक घर में एकेक पोराजा की लेन दी गुरु महाराज के सामने मुक्ताफल की गहुँली और ५०० दीनार गहुँली पर रखी गई इत्यादि करोड़ों रुपये खुले दिल से खर्च किये । धर्म एवं जन हितार्थ सोमदेव ने पुष्कल द्रव्य व्यय किया इससे राजा प्रजा ने मिल कर सोमदेव को सेठ पदवी दी उस दिन से सोमदेव की संतान सेठ कहलाने लगी। भीनमाल गुजरात की सरहद पर आबाद होने से कई बातें एवं भाषा गुजराती भी बोली जाती है जैसे गुजरात में सेठ को सेठिया कहते हैं समयान्तर इस जाति के लिये सेठ के बदले सेठिया नाम प्रचलित हो गया। इत्यादि । इस सेठ जाति की देव गुरू धर्म पर भावना-श्रद्धा और सद्कार्य करने से तन, जन एवं धन की बहुत वृद्धि होती रही। एक भीन्नमाल में पैदा हुई जाति, मारवाड़, मेवाड़, मालवा, मत्स्य, गुजरात, लाट सौराष्ट्र, कच्छ आदि कई देशों में वटवृक्ष की तरह फैल गई इस जाति के सब लोग प्रायः व्यापार ही करते थे पर कुछ लोग राज कार्य भी किया करते थे। इस जाति में सब मिलकर ७२ गौत्र हुए थे पर जाति बढ़ने से एक-एक गौत्र से और भी जातियों का प्रादुर्भाव सूरिजो का चमत्कार और जैनधर्म ११७५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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