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________________ वि० सं० ७७८-८३७ ] [भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास हांसी मस्करी की रूढ़ी सर्वथा नहीं छुट गई थी कुछ कुछ नमूना तो आज भी हम देख सकते हैं जैसे श्रोसवालों के यहां जात महमान पाते हैं तब उनके स्वागत में गीत गाते हैं उसमें भी वही शब्द गाया करते हैं अतः आपस की हांसी मस्करी से भी कई जातियां बन गई कई गजका काम करने से, कई व्यापार से, कई नगरों के नाम से, कई धार्मिक कार्य करने से, और कई नामांकित पुरुषों के नाम से नमूने के तौर पर कतिपय जातियों के नाम यहां उद्धृत कर दिये जाते हैं। जिससे पाठक स्वयं समझ सकेगें ? १- हांसी मस्करी से बनी हुई जातियो के नामः--सांद, सियाल, मच्छा, हंसा, वील, काग, मुर्गीपाल, नाहर, गजा, वाघमार, लुंकड़, बुगला, मिन्नी, बाघ वार, गादिया, ऊंठडिया, गरुड़, हीरण, बाधरेचा, बेकड़ियां, चीड़कलिया, ढेलडिया, तोता, कांगड़ा, सोड़ियाणी, घोड़ावत, चकला, चिंचट, बकरम, श्रादि २ । २-व्यापार करने से जातियों के नामः-धीया, तेलिया, केसरिया, कपूरिया, गुगलिया, चापड़ा, कस्तुरिया, धूपिया, खोपरिया, गांधी, लूणिया, पटवा, चामड़, सोनी, मीनारा, जड़िया, जौहरी, नलिरिया, सराफ, बोहरा, मणियारा, गुदिया, पीतलिया, भंडोलिया, हलदिशा, धावड़ा सेवडिया, वजाज, कापड़िया, संगरिया, पारख, कुमट, कंसारिया, लुगड़िया, मोतिया, चौपड़ा, सुतरिया, पूर्णिया, समुदड़िया, हुंडीवाल, मेदीवाल, पोटलिया, मोदी, चिणोटिय, गुलखेड़िया, बजरिया, पोगचिया, दालिय, इत्यादि इत्यादि। ३-नगरों के नाम पर भी कोई जातियां बन गई थी:-जैसे हथुड़िया, साचौरा, जालौरी, नरबरा, रामपुररिया, पीपाड़ा, फलोदिया, सीरोहिया, भीनमाला, मेडतिया, नागौरी, कुचेरिया, हरसोग, रूणीवाल बोरूदिया, रामसेना, भटनेरा, गदेचा, डांगी, जयपुरिया, जैसन भेग, जोधपुरिया, नाणवाल, मंडोवरा जीरा वला, सुरपुरिया, पांचौरा सौजनिया, संभरिया, कबाणा, सौनामा, माथुरा, भुतेड़िया, भरूंचा, पाटणिया, रवींवणदिया, पल्लीवाला, नंदवाणा हापड़ा खांगटिया, रोणीवाल, वागड़िया, ढेढिया, चामड़िया। चंडालिया, दांन्तियां, भोपाला, रमपुरा, संढेरा, खींवसरा, पुंगलिया, श्रोभाल, दुधोड़ा, पोकरणा, समदड़िया, इत्यादि ४ राज का काम करने वालों की भी कई जातियों वन गई जैसेः - भंडारी क ठारी, खजांची, मंत्री, कामदार, फौजदार, चौधरी पटवारी, मेहता, कानुगा, दफ्तरी, शरवा, रणधीरा, पोतदार, भोमिया, वोहग, डोडीदार, चोपदार, नगरसेठ, टीकायत, नौपता, राजसोनी शिशोदिया, राठौर, चौहान, परमार, सोनीगरा । ५-कई जातियां चकार अन्त की भी बन गई जैसे:-- कोटेचा, कांगरेचा, जेगरेचा, ब्रोचा, बाधरेचा, कांकरेचा,मालेचा, पामेचा, पावेचा, नातेचा, डांगरेचा, पालरेचा संखलेचा, संगेवा, मादेचा, नांदेचा, गुंदेचा, गुंगलेचा, काडेचा, मुंगेचा, राजेचा, सखेचा, पुंगेचा, लुणेचा, भादरेचा, जाणेवा, सोनेचा, लुंगेचा, साणेचादि । ६. धार्मिक कार्यों से भी कई जानियां बन गई जैस-संघी, चौसरिया, पोषाबाल, पुजारा, फूल पगर, नवकारसिया, सामीभाई, वात्सलिया नौलखा, दादा, धूपिया, केसरिया, दीवटिया, पीलजातिया, शिखरिया, भावुका, मादलिया, आरतिया । इत्यादि । ७-कई जातियां चिड़ने चिड़ाने से भी बन गई जैसे-टाटिया भूतेड़ा, तुरकिया, फितुरिया, गोगड़ा, वडवड़ा, चिड़कणिया । इत्यादि । ८-कई जातियां अपने पूर्वजों के नाम पर बन गई जैसे-सिंहावत्, वाधावत, पाताबत, जौधावत, मालावत, चाम्पावत, पोमावत, नागावत, धर्मावत, सदावत, नाथावत, लूणावत, भांडावत, पूजावत, सालगोत, दोलोत, कानोत, राजोत, रामावत, सूजावत, खेतावत, गणावत, मूजावत्, भीमावत, जुमावत, लालोत, ११६८ जातियों पनने का कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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