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________________ वि० सं ० ६६० से ८६० ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास भाव में वह अपने श्राप चतुर्गति दृष्टि से भी भरत क्षेत्र में बहुत पुत्र मनाना चाहिये की जिससे हम धर्म उनके आपस में इसी तरह की गाली देने का तात्पर्य यही कि मनुष्य बहुत धनी किंवा विशाल परिवार वाला होने पर कुछ भी धर्माराधन नहीं कर सकेगा अतः धर्म मय जीवन के रूप संसार में परिभ्रमण करता रहेगा । जब महाविदेह क्षेत्रवालों की वाला होना श्रारूप है तो पुत्र अभाव में अपने को तो परम आनंद ध्यान करने में एक दम स्वतंत्र हैं सेठानी जी ! आपका इस तरह उदास रहना सर्वथा वास्तविक है अपने को तो अनवरत गतिपूर्वक धर्म ध्यान में उद्यमवंत होना चाहिये । पतिदेव के उक्त टकवत् हृदय विदारक एवं साक्षात् उपेक्षा वृत्ति प्रदर्शक वचनों को सुनकर सेठानीजी के दुख में और भी वृद्धि हुई । सेठजी ने कई उपायों से समझाने का प्रयत्न किया किन्तु सेठानीजी को किसी भी तरह से संतोष नही हुआ इस तरह सेठजी के अनेकानेक उपाय निष्फल ही होते रहे। एक दिन विवश हो अष्टम तप कर सेठानीजी ने अपनी कुल देवी सच्चायिका का ध्यान किया। तीसरे दिन देवी ने स्वप्न में सेठानी को कहा – तुम्हारे पुत्र तो होगा पर वह १५ वर्ष की वय में दीक्षित हो जायगा । तुम उसे किसी तरह से रोकना नहीं इतना कह कर देवी श्र श्य हो गई । अब सेठानी की आँखें खुल पई । वह अपने पति के पास आकर स्वप्न का सारा वृत्तान्त यथातू कह सुनाये | देवी कथित वचनों को श्रवण कर प्रसन्न हो सेठ जी बोले- सेठानीजी ! आप बड़े भाग्य शाली हो की देवकी आप पर पूरी कृपा दृष्टि है । सेठानी ने कहा- पूज्यवर ! देवी की कृपा तो है पर, पुत्र होकर १५ वर्ष की अल्प वय 'ही दीक्षा लेलेगा तब मैं क्या करूंगी ? सेठजी - तुम्हारी कुक्षि से पैदा हुआ पुत्र दीक्षित होकर अपनी आत्मा के साथ अन्य अनेक श्रात्माओं को तारे यह तो आपके लिये अत्यन्त गौरव की बात है । इससे तो उसकी आत्मा का भी उद्धार होगा और कुल का नाम भी उज्ज्वल होगा । यदि इतने पर भी पुत्र पर ज्यादा प्रेम हो तो तुम भी साथ में दीक्षा ले लेना । इससे दोनों की ही आत्मा का कल्याण हो जायगा । सेठानी - मैं दीक्षा लूंगी तब आप क्या करेंगे ? सेठजी- मैं भी दीक्षा ले लूंगा । सेठानीजी - फिर घर को कौन सम्भालेगा ? सेठजी - घर है किसका ? सेठानीजी - क्या आप नहीं जानते कि घर अपना है । सेठजी - अरे अपना तो शरीर ही नहीं है फिर घर कैसे अपना हो सकता है ? इस तरह सेठ, सेठानी के परस्पर विनोद की बातें चलती रही । कालान्तर से सेठानी ने गर्भ धारण किया और गर्भ के प्रभाव से सेठानी को अच्छे २ दोहले ( गर्भ के जीव के प्रभाव माता के हृदय के मनोरथ ) उत्पन्न होने लगे । पूजा, प्रभावना, स्वामी वात्सल्य, जिन दर्शन, सुपात्रदान जिन महोत्सव, धर्मशास्त्र श्रवण इत्यादि कार्य गर्भ के प्रभाव से उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त होते रहे । सेठजी भी पुत्र जन्म की भावी खुशी से सर्व मनोरथ सत्वर पूर्ण करते थे । सेठजी ऐसे भी उदार दिल के व्यक्ति थे और लक्ष्मी की भी कमी नहीं थी अतः धार्मिक कार्यों में द्रव्य को व्यय कर पुण्य सम्पादन करना उन्हें रुचिकर प्रतीत होता था । सेठानी ने पूरेमास होने के पश्चात् पुत्र रत्न को जन्म दिया । श्रनेक महोत्सवों के करते हुए पुत्र का नाम खेमा रख दिया । जब खेमा ७ वर्ष का हुआ तब ही से उसकी माता सेठानी, गुरुणीजी के उपा १०६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only सेठानी पर देवी की कृपा www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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