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________________ आचार्य देवगुप्तसूरी का जीवन ] [ ओसवाल सं० १००१-१०३१ " भाद्र सुचंति ७-वीरपुर के चरड़ दोलाने ८-नाणापुर के प्राग्वट पदमाने ९-मांडव्यपुर के मोकलने सम्मेत शिखर का १०-सोपारपट्टन के करणापट लुबाने शत्रुजय का संप ११--चित्रकोट के करमणने १२-धोलपुरा के लुंग आमदेवने १३-पद्मावती के प्राग्वट लालाने १४-मथाणी कनोजिया वीरम की पत्नी ने तलाव खोदाया १५-पासोडी के प्राग्वट खुमाण की पुत्री भूरीने एक वापी खुदाई १६-शिवपुर के प्राग्वट देदा की विधवा पुत्री सुखीने तलाव खुदाया १७-चन्द्रावती के पोरवाल वीर अजड़ युद्ध में काम पाया० सती हुई १८-हत्थुड़ी के श्रीमाल ओटो युद्ध में काम आया , १९-पद्मावती के प्राग्वट , मंत्रीवीरम युद्ध में काम ,, , २०-वि० सं० ६१२ मारवाड़ में भयंकर दुकाल पड़ा था जिसके लिये उपकेशपुर के श्रेष्टिवय्यों ने चन्दा कर करोड़ों द्रव्य से देशवासी भाइयों एवं पशुओं के लिए अन्न एवं धास देकर प्राण बचाये । २१ वि० सं० ६२३ में भारत में एक जबर्दस्त दुष्काल पड़ा जिसके लिये चन्द्रावती आदि नगरों के धनाड्य लोगों ने कई नगरों में फिर कर महाजन संघ से चन्दा एकत्र कर उस दुकाल को भी सुकाल बना दिया था जहाँ मिला वहाँ से धान घास मंगवा कर देशवासी भाइयों के एवं मुक् पशुओं के प्राण बचाये २२-वि० सं० ६२९ में भी एक साधारण दुकाल पड़ा था जिसमें नागपुर के आदित्यनाग गौत्रीय शाह गोसल ने एक करड़ो रूपये व्ययकर मनुष्यों को अन्न जोर पशुओं को घास उदार दील से दियाथा इत्यादि महाजन संघ ने अपनी उदारता से अनेक ऐसे २ चोखे और अनोखे काम किये थे कि जिन्हों की उज्वल कीर्ति और धवल यशः आज भी अमर है। पट्ट सेतीसवें हुए सूरीश्वर, श्रेष्टिकुल शृंगार थे । देवगुप्त था नाम आपका, क्षमादि गुण भण्डार थे । प्रतिबोध करके सद् जीवों का, उद्धार हमेशों करते थे । सुनकर महिमा गुरुवर की, पाखण्डी नित्य जरते थे ।। इति भगवान् पार्श्वनाथ के सेतीसवे पट्ट पर देवगुप्त सूरि नामक महा प्रभाविक प्राचार्य हुए आचार्य देवगुप्तसूरि का स्वर्गवास १०४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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