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________________ वि० सं० ५२०-५५८] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास श्रीमान् ओमाजी के मतानुसार इ िहास लिखने के अन्यान्य साधनों में जैन पट्टावलियों एवं वंशावलियां भी एक प्रमुख साधन हैं। जैनाचार्यों ने अनेक प्रान्तों में बिहार कर कई छोटे बड़े राजाओं को उपदेश देकर असा परमोधर्म एवं जैन धर्म के परमोपासक एवं जैनधर्म के प्रचारक बनाये इसी प्रकार यथा राजास्तथा प्रजा इस न्याय से जहां राजा धर्मीष्ट होते हैं वहां प्रजा भी उसी श्रम की विशेषम आ धिना करती है और यह बात संभव भी है कि जिस धर्म के उपासक र जा हैं वह धर्म प्र । में खूब फैल जाता है । यही कारण था कि उस समय जैनधर्म की आराधना करने वालों की संख्या करोड़ों तक पहुँच गई थी इ को मुख्य कारण राजाओं ने जैनधर्म को खूब अपनाया एवं चार बढ़ाया था जब मे राजाओं ने जैनधर्म से किनारा लिया तब से ही जैनों की संख्या कम होने लगी और क्रमशः आज बहुन अल्प संख्या रह गई । हमारी पट्टावलियों वशावलियों में ऐसे अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं कि पूर्व जमाने में अनेक राजा महाराजा जैनधर्म के उपासक एवं प्रचारक थे इतना ही क्यों पर कई राजाओं की संतान परम्परा तक भी जैनधम पालन किया है जिन्हों का चरित्र तोहुत विस्तृत है पर मैं यहां पर संक्षिप्त से ही लिख देता हूँ। १-राजा उत्पलदेव-आप सूर्यवंशी महाराजा भीमसेन के पुत्र एवं उपवेशपुर आबाद आपने ही किया था आचार्य रत्नप्रभसूरि ने उपदेश देकर आपके साथ लाखों क्षत्रियों एवं जारों ब्राह्मणों को जैनधर्म की शिक्षा दीक्षा दी थी और आपके नायकत्व में ही महाजन संघ की स्थापना की थी। राजा उत्पलदेव ने जैन धर्म का प्रचार करने में खूब मदद की थी। अपने मरूधर प्रान्त से सव से पहला तीर्थ श्री शत्रुजय का विराट संघ निकाल तीर्थयात्रा का मार्ग खोल दिया था शहर के नजदीक पहाड़ी पर भगवान् पाश्वनाथ का उतंग जिनालय बना कर उसको प्रतिष्ठा बड़े ही म धूम से करवा कर जनता में भक्ति भाव उत्पन्न किया था इतना ही क्यों पर प्राचार्य जी यक्षदेवसूरि जिस समय सिन्ध धरा म पधारने का विचार किया उस समय भी अपने ही सलाह एवं सहायता दी थी इत्यादि आप अपना शेष जीवन जैन धर्म का प्रचार करने में व्यतीत किया था ___ महागजा उत्पलदेव के प्रधान मंत्री चन्द्रवंशीय ऊहड़ थे राजा के धर्म प्रचार कार्य में आपकी विशेष मदद थी आपका जीवन राजा के जीवन के साथ लिखा गया है आपके जीवन में विशेष घटना यह बनी थी कि केशर की 'नता पर श्रीमाल के ब्राह्मणों के लागन-दापा का जबर्दस्त टेक्स था उसको हटा कर उपकेशपुर के लोगो को उस जुल्मी टेक्स से शुक्त कर दिया जो आज पर्यन्त उपकेश वंशी ( ओसवाल जाति ) स्वतंत्र एवं सुब से जीवन व्यतित कर रहा है मंत्री ऊहड देव ने भी जैन धर्म का प्रचार कार्य में पूज्याचार्य देव एवं राजा का हाथ बेटाया था मंत्रेश्वर ने उपके !पुर में भगवान महावीर पा मन्दिर बनवा कर एवं आचार्य रत्नप्रभसूरि के कर कमलों से प्रतिष्ठा करवा कर अपनी धवल कीर्ति को अमर बना दी जिस मन्दिर की पात्र सेवा पूज्य कर अनेक भावुक अपना कल्याण कर रहे है। जिनका विस्तृत वर्णन पिछले पृष्ठों में हम कर आये हैं मंत्री ऊहड़ के पुत्रों से जिस समय एक पुत्र ने आचार्य रत्नप्रभसूरि के पास दीक्षा ली थी उस समय 'वेश्वर ने उस को मना नहीं कर लाखों रुपये व्यय कर दीक्षा का बड़ा ही शानदार महोत्सव किया था यही कारण था कि मंत्रेश्वर को धर्म का सच्चा रंग था। ९६० [राज्य-प्रकरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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