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________________ वि० सं० ४४०-४८० वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास लिये तो कुछ पुन्य संचय किया जाय । और आपके कथनानुसार पिछे नाम भी रह जायगा वस। में इतना से ही संतोष करलंगी--- स्ठजी-बहुत खुशी की बात है मैं आज ही इस बात का प्रबन्ध कर दूंगा। मेरे दिल में मन्दिर बनाने की बहुत दिनों से अभिलाषा थी पर विचार हो विचार में इतने दिन निकल गये फिर भी मैं आपका उपकार समझता हूँ कि आपने मुझे इस कार्य में सहायता दी अर्थात् प्रेरणा की है बस । सेठानी ने अपने अनुचरों द्वारा शिल्प शास्त्र के जानकार कारीगरों को बुला कर कहा कि एक अच्छा मन्दिर का नकशा कर के बतालाओं मुझे एक अच्छा मन्दिर बनवाना है । कारीगरों ने कहा श्रापको द्रव्य कितना खर्च करना है ? संठजी ने कहाँ द्रव्य का सवाल नहीं है मन्दिर अच्छा से अच्छा बनना चाहिये कई शिल्पाज्ञ एकत्र होकर चौरासी देहरी वाले विशाल मन्दिर का नकशा बना कर सेठजी के सामने रखा जिसको देख कर सेठजी खुश हो गये अच्छा मुहूर्त में मन्दिर का कार्य प्रारम्भ कर दिया । इधर जो-ज्यों मुनियों का पधारना होता गया त्यों-त्यों श्रागम लिखना भी शुरु कर दिया एवं दोनों शुभ कार्य खूब वैग से चल रहे थे जिससे सेठ सेठानी दीलचस्पी से एवं खुल्ले हाथ द्रव्य व्ययकर रहे थे। नगरी में संठजी की अच्छी प्रशंसा भी हो रही थी। एक समय सेठानी मैना अपने रंगमहल में सोरही थी अर्द्ध निशा में कुछ निद्रा कुछ जागृत अवस्या में स्वप्न के अन्दर एक सिंह मुंहसे जिभ्या निकालता हुआ देखा । सेठानी चट से सावधान होकर अपने पतिदेव के पास आई और अपने स्वप्न की बात सुनाई जिसपर सेठजी बड़ी खुशी मनाते हुए कहा सेठानीजी आपके मनोरथ सफल होगया है इस शुभ स्वप्न से पाया जाता है कि कोई भाग्यशाली जीव आपके गर्भ में अवतीर्ण हुआ है वस ! आज सेठ सेठानी के हर्ष का पार नहीं था भला ! जिस वस्तु की अत्यधिक उत्कण्ठा हो और अनायाश वह वस्तु मिलजाय फिर तो हर्ष का कहना ही क्या है सुबह होते ही सेठजी ने सब मन्दिरों में स्नात्र महोत्सव किया-करवाया। ज्यों ज्यों गर्भ वृद्धि पाता गया त्यों त्यों सेठानी को अच्छे अच्छे दोहले मनोर्थ उत्पन्न होताग या अर्थात् परमेश्वर की पूजा करना गुरुमहाराज का व्याख्यान सुनना सुपात्रमें दान साधर्मी भाई और बहिनों को घर पर बुलाकर भोजनार्द से सत्कार करना गरीब अनाथो को सहायता और अमरी पड़ादि जिसकों मंत्री यशोदित्य सानन्द पूर्ण करता रहा जब गर्भ के दिन पूरे हुए तो शुभ रात्रि में सेठानी ने पुत्र रत्नको जन्मदिया जिसकी खबर मिलते ही सेठजी ने मन्दिरों में अष्टन्हिका महोत्सव व याचकों को दान सज्जनों को सम्मान दिया और महोत्सव पूर्वक पुत्र का नाम 'शोभन' रक्खा । इधर तो मन्दिरजी का काम घूम धाम से बढ़ता जारहा था उधर शोभन लालन पालन से वृद्धि पाने लगा। सेठजी ने भगवान महावीर की सर्वधातमय १.६ आंगुल प्रमाण की मूर्ति बनाई जिनके नेत्रों के स्थान दो मणिय लगवाई जोकि रात्रि को दिन बना देती थी तथा एक पार्श्वनाथ की मूर्ति पन्ना की आदीश्वर की होरा की और शान्तिनाथ की माणक की मूर्तिएँ बन ई दूसरी सव पाषाण की मूर्तियाँ बनाई इस मन्दिर का काम में सोलह वर्ष लगगये इस सोलह वर्ष में भाता मैना ने क्रमशः सात पुत्रों का जन्म देकर अपने जीवन को कृतार्थ बना दिया था। नर का नसीब किसने देखा है एक दिन वह था कि माता मैंना पुत्र के लये तरस रही थी आज सेठानी के सामने देव कुँवर के सदृश सात पुत्र खेल रहे हैं । अब तो सेठ सेठानी की भावना मन्दिरजी की प्रतिष्टा जल्दी करवाने की ओर लग गई। श्रेष्टि कुंवर शोभन एक समय आर्बुदा चला गया था वहाँपर आचार्य यक्षदेव सूरि का दशन किये ८५२ (सेठजी के पुत्र होना और मन्दिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003212
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages842
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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