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________________ तीर्थ माला संग्रह इच्छा यह थी कि पार्श्वनाथ को जलमग्न करके इनका ध्यान भंग किया जाय, ठीक उसी समय धरणेन्द्र नागराज भगवान को वन्दन करने पाया और भगवान पर मूसलधार वृष्टि होती देखी । धरणेन्द्र ने भगवान के ऊपर फण छत्र किया और इस अकाल वृष्टि करने वाले कमठ का पता लगाया, यही नहीं उसे ऐसे जोरों से धमकाया, कि तुरन्त उसने अपने दुष्कृत्य को बंद किया और भगवान पार्श्वनाथ के चरणों में शिर नमाकर उसने धरणेन्द्र से माफी मांगी जलोपद्रव के शान्त हो जाने पर नागराज धरणेन्द्र ने अपनी दिव्य शक्ति के प्रदर्शन द्वारा भगवान का बहुत महिमा किया ! उस स्थान पर कालान्तर में भक्त लोगों ने एक बड़ा जिन प्रासाद बनवाकर उसमें पार्श्वनाथ की नाग फरण छत्रालंकृत प्रतिमा प्रतिष्ठित की। जिस नगरी के समीप उपर्युक्त घटना घटी थी, वह नगरी भी 'अहिच्छत्रानगरी' इस नाम से प्रसिद्ध हो गई। ___अहिच्छत्रा विषयक विशेष वर्णन सूत्रों में उपलब्ध नहीं होता, परन्तु जिनप्रभ सूरि ने “अहिच्छत्रा नगरी कल्प' में इस तीर्थ के सम्बन्ध में कुछ विशेष बातें कही हैं, जिनमें से कुच्छेक नीचे दी जाती हैं___(अहिच्छत्रा) पाव जिन चैत्य के पूर्व दिशा भाग में सात मधु जल से भरे कुण्ड अब भी विद्यमान हैं, इन कुण्डों के जल में स्नान करने वाली मृत वत्सा स्त्रियों की प्रजा स्थिर (जीवित) रहती हैं, उन कुण्डों की मिट्टी से धातुवादी लोग सुवर्ण सिद्धि होना बताते हैं। 'पार्श्वनाथ की यात्रा करने आए हुए याशिक गण अब भी जब भगवान् का स्नपन महोत्सव करते हैं उस समय कमठ दैत्य यहां पर प्रचण्ड' पवन वृष्टि बादलों द्वारा दुर्दिन कर देता है।' . 'मूल चैत्य से थोड़ी दूरी पर सिद्ध क्षेत्र में धरणेन्द्र पद्मावती सेवित पार्श्वनाथ का मन्दिर बना हुआ है ।' - 'नगर के दुर्ग के समीप नेमिनाथ को मूर्ति से सुशोभित सिद्धबु नामक दो बालक रूपकों से समन्वित हाथ में आम्र फलों की डाली लिए सिंह पर आरूढ़ अम्बिका देवी की मूर्ति प्रतिष्ठित है।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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