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________________ तीथं माला संग्रह कीधां अणसण जिहां रही ऊभ, तिहां देवे थाप्यां सहू थूभ । मांहि माँड्या जिनवर पाय, ए मोटउ मुगतिउ पाय ॥७३।। सीधउ इहां शील सन्नाह, करि अणसणनउ निरवाह । लख भव लगि रूपीराय, रुलिओ पालोअण अण प्रणठाय ।।७४।। प्रतिबोधी जइतउ जाट, जस भद्रि ग्रही गिरिवाट । बप्प भट्ठि गुरु पालित्त, इहां यात्रा करता नित ॥७५।। अवदात घरणा छइ गिरिना, कहवाइ किम बहु परिना । भाग्य हुइ ते ए गिरि फरसइ, तिहां निसिदिन जलह वरसइ ॥७६॥ गिरि आगई कोसे बारे । उपरि थी देव जुहारे। रिजु वालीय जंभी गाम, वीरह जिन केवल ठांम ॥७७ । इम यात्र करी निरदंभ, तलहढीइ पारणारंभ । संघ भगति करि भारज तोडइ, साहा रूपि गजी विग जोडइ । ७८॥ तिहां थी हवि कीध पयाणु, वाटइं वहई चाप वर वाणु। श्रेणिक सुत कोणीवासो । जिहां वीर रह्या चउमासी ॥७६ ।। सद्दहला जे गुरु वयणे, ते नयरी दीठी नयणे । वीर श्रमणोपासक रहता, ते तुगीपा नगरी पुहता ॥८॥ राजगह कोसे साते, तिहां थी पहुता परभाते। जिहां जनम्या सुव्रत सामी, जिहां पर्वत पांचइ नामी ।।८१॥ वैभार विपुल गिरि उदय, गिरि स्वर्ण रतन गिरि उदय । वैभार ऊपरि निसिदीस, घर वसतां सहस छत्रीस ॥२॥ गिरि पांचे दउढ सउ चैत्य, त्रिरिण सिं त्रिण बिंब समेत । सीधा गणधर इह इग्यार, वांदुहं तस पद आकार ॥३॥ साह शालिभद्र इहां धन्नउ, हुआ धर्म कीउ इक मन्नउ । अणसण सिलि काउसग लो वीर, रहिया सालउ बहिनेवी ॥४॥ मुनिमेव अभय कयवन्नउ, बीजउ कांकदी धन्नउ । एणे कीधू संथारु, राख्य उतवि दुखउ धारउ ॥८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003209
Book TitleTirth Mala Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherParshwawadi Ahor
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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