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________________ सूरीश्वर और सम्राट् । भारत के इन वीरोंकी वीरता देखकर अकबरको यह विश्वास हो गया था कि, यदि भारतके वीर क्षत्रियों में फूट न होती तो मैं भारतमें कदापि साम्राज्यकी स्थापना नहीं कर सकता था। हायरे फूट ! भारतको सर्वथा नष्ट कर डालने पर भी तू अबतक इस पवित्र देशसे अपना कालामुँह क्यों नहीं करती ? कहाँ आर्यत्वकी रक्षाके लिए भूख और प्यासको सहने और जंगलोंमें भटकने वाले हिन्दु सूर्य महाराणा प्रताप ! और कहाँ पदवियोंके (Titles) लिए मर मिटनेवाले-अपनी आर्यप्रजाको बर्बाद करने वाले आजके कुछ खुशामदी नामधारी हिन्दु राना ! ओ भारतमाता ! ऐसे धर्मरक्षक और देशरक्षक वीरपुत्रोंको उत्पन्न करनेका गौरव अब फिरसे तू कब प्राप्त करेगी ? इतिहासके पृष्ठ इस बातको दृढ करते हैं कि, दूसरे मुसलमान बादशाहोंकी अपेक्षा अकवर प्रनाका विशेष प्यारा था। इतना ही नहीं अबतक भी इतिहास लेखकों के लिए अकबर इतिहासका एक विषय हो गया है। ऐसा क्यों हुआ? इस के अनेक कारण बताये जासकते हैं। पहला कारण तो यह था कि, हिन्दु, मुसलमान, पारसी, यहूदी, जैन, ईसाई आदि प्रत्येकापर उसकी समान दृष्टि थी। इतना ही नहीं उसने हरेक धर्मवालेको जुदाजुहा प्रकार के ऐसे फर्मान दिये हैं कि, जो यावच्चंद्रदिवाकरौ अकबरका स्मरण कराते रहेंगे। दूसरा कारण यह है कि, उसने प्रत्येकको प्रसन्न रखने के लिए अनेक सुधार भी किये थे । वैश्या और शराब के लिए उसने बड़ी कठोरता की थी। धनी या निर्धन कोई भी आवश्यकतासे अधिक नाज नहीं रख सकता था । बाजार भाव बढ़ाकर व्यापारी गरीबोंको कष्ट न दें, इस बातका खयाल रखनेकी उसने अपने कोतवालको सख्त ताकीद करदी थी। उसने सती होनेकी पृथाको और बालविवाहको रोका था । बालविवाहको रोकनेके लिए उसने यह आदानी थी कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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