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________________ umumtarnatarawasan निर्वाण। बागीचा और उसके आसपासकी बाईस बीघे* जमीन अकबर बादशाहने जैनोंको देदी थी। इसी बागीचेमें-जहाँ सूरिजीका अग्नि संस्कार हुआ था-दीवकी लाड़कीबाईने एक स्तूप बनाकर उस पर सूरिजीकी पादुका स्थापन की थी। हीरविजयसूरिके निर्वाणके पन्द्रह दिन पीछे, कल्याणविज. यजी उपाध्याय ऊना पहुँचे थे । उन्हें सूरिनीके स्वर्गवासके समाचार सुनकर बड़ा दुःख हुआ । सूरिजीके अद्वितीय गुण उन्हें बार बार याद भाने लगे और जैसे जैसे वे गुण याद आते वैसेही वैसे उनका हृदय भर आता और आँखोंसे पानी निकल पड़ता। कल्याणविजयजीको धावकों और साधुओंने अनेक प्रकारसे समझाकर शान्त किया। फिर उन्होंने अग्नि संस्कारवाले स्थानपर जाकर स्तूपके दर्शन किये । दूसरी तरफ लाहोरसे रवाना होकर विजयसेनसूरि हीरविअयसूरिके निर्वाणवाले दिन कहाँतक पहुंचे थे इस बातकी खबर न थी। विजयसेनसूरिभी विश्राम लिए बिना, इस इच्छासे उनाकी तरफ बढ़े आरहे थे कि, जल्दी जाकर गुरुके चरणोंमें मस्तक रक्खू और अपने आपको पावन करूँ। मगर प्रबल मावीके सामने किसीका क्या जोर चल सकता है । विजयसेनसूरिके भाग्यमें गुरुके अन्तिम * देखो ‘ हीरसौभाग्य काव्य ' सर्ग १७, श्लोक १९५, पृष्ठ ९०९ + यह पादुका अब भी मौजूद है । उस पर जो लेख है उससे विदित होता है कि, इसकी प्रतिष्ठा वि० सं० १६५२ के कार्तिक वदि ५ बुधवार के दिन विजयसेनसूरिने की थी । लेखमें सूरिजीके निर्वाण की तिथि ( भादवा सुदी ११) भी दी गई है । हीरविजयसूरिजीने जो बड़े बड़े कार्य किये थे उनका उल्लेख भी इसमें है । यह लेख ' श्रीअजारापार्श्वनाथजी पंचतीर्थी महात्म्य और जीर्णोद्धारका द्वितीय रीपोर्ट नामकी पुस्तकके ३४ वे पृष्टमें प्रकाशित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003208
Book TitleSurishwar aur Samrat Akbar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherVijaydharm Laxmi Mandir Agra
Publication Year
Total Pages474
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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