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________________ ५८३ त्रयस्त्रिंश स्तम्भः। पीछे किसी भी सवारीमें नही चढे हैं; तो, तुम किसवास्ते लोकोंमें भगवंतको योग लीयांपीछे सवारीमें चढनेवाले सिद्ध करते हो? दिगंबर:-यह तो हम, हमारी भक्तिसें करते हैं. श्वेतांबरः-तब तो भक्तिसे कटककुंडलादि क्यों नही पहिराते हो ? दिगंबरः-कटककुंडलमुकुटादि पहिरानेसे जिनमुद्रा बिगड जाती है. श्वेतांबर:-रथमें वा पालकीमें बैठे हुए भगवंतकी मुद्रा भी, बिगड जाती है. क्योंकि, चाहो नग्न होवे, चाहो वस्त्रादिसहित होवे; जब रथ, वा पालकीमें बैठा होवेगा, तब तिसको कोइ भी त्यागी, वा योगी वा योगमुद्राका धारक, नहीं कहेगा. जैसें तुमारे मतके नग्न मुनिको रथमें, वा पालकी में, वा हाथी, घोडे, ऊंट, ऊपर चढाके लिये फिरे तो, तिसको कोइ भी दिगंबरी वंदन नहीं करेगा; और न उसको मुनिअवस्था, वा योगमुद्रा, मानेगा. इसवास्ते हठ छोडके श्वेतांबरोंकीतरें पूजा भक्ति, चंदन, पुष्प, धूप, दीपाभरणारोहणसें करो, जिससे तुह्मारा कल्याण होवे. और श्वेतांबरमतमें तो, जिनप्रतिमाका अचिंत्य स्वरूप माना है; इसवास्ते सर्व अवस्था जिनप्रतिमामें विराजमान है. भक्तजन जैसी अवस्था कल्पन करे हैं, तैसीही अवस्था तिनको भान होती है. और भगवंतकी सर्व अवस्था सम्यग्दृष्टिको आनंदोत्पादक है. इसी हेतुसे जिनमतमें पंचकल्याणक कहे हैं. और कल्याणक शब्दका यह अर्थ है कि, पांच वस्तु गर्भ १, जन्म, २, दीक्षा ३, केवल ४, और निर्वाण ५, में उत्सवभक्ति करनेसें, जो, भक्तजनोंको कल्याण अर्थात् मोक्षका हेतु होवे, सो कल्याणक. । हम दिगंवरोंको पूछते हैं कि, तुम जिन जन्मकल्याणककी भक्ति करते हो, सो धर्म मोक्षका मानके करते हो, वा पाप जानके? जेकर धर्म मोक्षका हेतु जानकर करते हो, तब तो, चिरंजीवी रहो; तुमारी भक्ति ठीक है, सदैव कर्त्तव्य है. जेकर पाप मानते हो, तब तो अल्पबुद्धि हो. क्योंकि, लाखों द्रव्य खरचके, पापोपार्जन करके, दुर्गति जाना, यह मूल्हीका काम है; दोनों हानियें करनेसें, ढूंढकवत्. जैसे ढूंढकमतवाले दीक्षामहोत्सव करते हैं, साधुसाध्वीके दर्शनोंको जाते हैं, साधुसाध्वीयोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003207
Book TitleTattvanirnaya Prasada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAmarchand P Parmar
Publication Year1902
Total Pages878
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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