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________________ मर्कटतंतुचारण, चक्रमणज्योतिरश्मिचारण, वायुचारण, निहारचारण, मेघचारण, | ओसचारण, फलचारण, इत्यादि इनमें तिर्यक् अथवा ऊर्ध्वगमन करने वास्ते धूम को आलंबन कर के जो अस्खलित गमन करे उन को धूमचारण कहते हैं । चंद्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारादिक की तथा अन्य किसी भी ज्योतिः की किरणों का आश्रय करके गमनागमन करे उनको चक्रमण ज्योतिरश्मिचारण कहते हैं । सन्मुख अथवा पराङ्मुख जिस दिशा में वायु (पवन) जाता हो उस दिशा में उसी आकाश | प्रदेश की श्रेणि को आश्रय कर के उस के साथ ही चले उन को वायुचारण कहते हैं । इसी तरह जंघाचारण सूर्य के किरणों की निश्राय कर के अवलंबन कर के उत्पतते । हैं, श्रीभगवतीसूत्र के तीसरे शतक के पांचवें उद्देश में कहा है कि संघ के कार्य वास्ते | साधुलब्धि फोरे तो प्रायश्चित्त नहीं लगता है, यत ४७ - से जहा नामए केति पुरिसे असिचम्मपायग्गहाय गच्छेज्जा एवमेव अणगारोवि भाविअप्पा असिचम्मपाय हत्थकिञ्चएणं अप्पाणेणं उढवेहासं उप्पइजा ? हंता उप्पइज्जा ।। अर्थ - जैसे कोई पुरुष असि (तलवार) और चर्मपात्र (ढाल ) ग्रहण कर के जावे वैसे भावितात्मा अनगार असि चर्मपात्र हाथ में है जिसके ऐसा, संघादिक के कार्य | वास्ते ऊर्ध्व आकाश में उत्पते जावे ? हां गौतम ! जावे । इस तरह भगवंत ने कहा है तथापि जेठा मतिहीन लिखता है कि लब्धि फोरने से | सर्वत्र प्रायश्चित्त लगता है, इस वास्ते जेठे का लिखना सर्वथा झूठ है I इस प्रश्न के अंतमें १५०० तापसकेवली हुए हैं । इस बात को झूठी ठहराने वास्ते जेठमल लिखता है कि "महावीरस्वामी की तो सातसौ केवली की संपदा है और जो गौतमस्वामी के शिष्य कहोगे तो उसके भी सिद्धांत में जगह जगह पांचसौ शिष्य कहे हैं ।" उत्तर महावीरस्वामी के शिष्य सातसौ केवलीमोक्ष गये हैं सो सत्य है । परंतु गौतमस्वामी के शिष्य उनसे जुदा हैं, यह बात समझ में नहीं आई सो मिथ्यात्व का उदय है । और गौतमस्वामी के पांचसौ शिष्य सिद्धांत में जगह जगह कहे हैं ऐसे जेठमल ने लिखा है सो असत्य है । क्योंकि किसी भी सूत्र में गौतमस्वामी के पांचसौ शिष्य नहीं कहे हैं । १ और 'श्रीकल्पसूत्र में गौतमस्वामी का जो पांचसौ शिष्य का परिवार कहा है सो | तो दीक्षा समय का है परंतु ग्रंथो में ५०००० केवली की कुल संपदा गौतमस्वामी की वर्णन की I कितनेक ढूंढिये कल्पसूत्र को वांचते हैं परंतु मानते नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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