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________________ सम्यक्त्वशल्योद्धार जुदे नाटक होवें और उस से हिंसा बढ जावे" उस का उत्तर-जेठमल की यह कल्पना बिलकुल झूठी है । जब सूर्याभ प्रभु के पास आया तब क्या देवलोक में शून्यकार था ? और समवसरण में बारहवें देवलोक तक के देवता और इंद्र थे । क्या उन्हों ने सूर्याभ जैसा नाटक नहीं देखा था ? जो वे देखने वास्ते बैठे रहे, इस वास्ते यहां इतना ही समझने का है कि इंद्रादिक देवता बैठते हैं । सो फक्त भगवंत की भक्ति समझ के ही बैठते हैं । तथा सूर्याभ देवलोक में नाटयारंभ बंद कर के आया है ऐसे भी नहीं कहा है । इस वास्ते जेठमल का पूर्वोक्त लिखना व्यर्थ है, और इस पर प्रश्न भी उत्पन्न होता है कि जब ढूंढिक रिख-साधु-व्याख्यान करते हैं तब विना समझे "हाँ जी हाँ" तहत वचन' करने वाले ढूंढिये उनके आगे आ बैठते हैं । जब तक वह व्याख्यान पढ़ते रहेंगे तब तक तो वे सारे बैठे रहेंगे। परंतु जब वह व्याख्यान बंद करेंगे तब स्त्रियाँ जा के चुल्हे में आग पावेंगी, रसोई पकाने लगेंगी, पानी भरने लग जावेंगी, और आदमी जा के अनेक प्रकार के छलकपट करेंगे, झूठ बोलेंगे, हरी सबजी लेने को चले जावेंगे, षट्काय का आरंभ करेंगे, इत्यादि अनेक प्रकार के पापकर्म करेंगे । तो वे सर्व पाप व्याख्यान बंद करने वाले रिखों (साधुओं) के शिर ठहरें या अन्य के ? जेठमलजी के कथन मुताबिक तो व्याख्यान बंद करने वाले रिखियों के ही शिर ठहरता है! १४. जेठमल लिखता है कि "आनंद कामदेव प्रमुख श्रावकों ने भगवंत के आगे नाटक क्यों नहीं किया ?" उत्तर-उनमें सूर्याभजैसी नाटक करने की अद्भुत शक्ति नहीं थी। १५. जेठमल लिखता है कि "रावण ने अष्टापदपर्वत ऊपर जिनप्रतिमा के सन्मुख नाटक कर के तीर्थंकरगोत्र बांधा कहते हो । परंतु श्रीज्ञातासूत्र में वीस स्थानक आराधने से ही जीव तीर्थंकरगोत्र बांधता है ऐसे कहा है । उस में नाटक करने से तीर्थंकरगोत्र बांधने का तो नहीं कथन है" उत्तर-इस लेख से मालूम होता है कि जेठे निन्हव को जैनधर्म की शैली की और सूत्रार्थ की बिलकुल खबर नहीं थी, क्योंकि वीस स्थानक में प्रथम अरिहंत पद है और रावण ने नाटक किया सो अरिहंत की प्रतिमा के आगे ही किया है । इस वास्ते रावण ने अरिहंतपद आराध के तीर्थंकरगोत्र उपार्जन किया है। १६. जेठमल लिखता है कि "सर्याभ के विमान में बारह बोल के देवता उत्पन्न होते हैं। ऐसे सूर्याभ ने प्रभु को किये ६ प्रश्नों से ठहरता है । इस वास्ते जितने सूर्याभ विमान में देवता हुए उन सर्वने जिन प्रतिमा की पूजा की है" उत्तर-जेठमल का यह लेख स्वमतिकल्पना का है, क्योंकि वह करणी सम्यग्दृष्टि देवता की है। मिथ्यात्वीकी नहीं । श्रीरायपसेणीसूत्र में सूर्याभ के सामानिक देवता ने सूर्याभ को पूर्व और पश्चात् हितकारी वस्तु कही है वहां कहा है यत - अन्नेसिं च बहुणं वेमाणियाणं देवाणयदेवीणय अच्चणिज्जाओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003206
Book TitleSamyaktva Shalyoddhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Punyapalsuri
PublisherParshwabhyudaya Prakashan Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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