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________________ (८) इसी ओर श्री वीरप्रभु के विहार के सम्बन्ध में एक प्रमाण यह उपस्थित किया जाता है कि नाणा, दियाणा, नांदिया और ब्राह्मणवाड़ा में श्रीमहावीरस्वामी - जीवितस्वामी के मन्दिर हैं यह तभी हो सकता है जब कि श्री महावीरस्वामी अपने जीवनकाल में वहां पधारे हों। परन्तु जीवितस्वामी नाम से भ्रम में पड़ने की आवश्यकता नहीं। क्योंकि इस शब्द का प्रयोग श्राज तक अनेक बार अनेक प्रकार से हुआ है। यह भी सिद्ध नहीं होता कि जीवितस्वामी का मन्दिर श्री वीरप्रभु की विद्यमानता में बनवाया गया, यह निम्नउद्धरणों से स्पष्ट हो अयगा। १. सुधाकुण्डजीवितस्वामि श्रीशान्तिनाथः २. जीवन्तस्वामी श्रीऋषभदेवप्रतिमा ३. श्रीजीवितस्वामी त्रिभुवनतिलक : श्रीचन्द्रप्रभः विविधतीर्थकल्प पृष्ठ ८५ (श्रीजिनविजयजी संपादित) ___ यदि इन उद्धरणों में 'जीवितस्वामी' अथवा 'जीवन्तस्वामी का मन्दिर' का अर्थ 'प्रभु की विद्यमानता में बनवाया गया मन्दिर' अथवा 'प्रभुकी विद्यमानता में उनकी प्रतिष्ठित मूर्ति' ग्रहण किया जाय तो उपयुक्त तीन तीर्थकरों के सम्बन्ध में इस अर्थ को कैसे घटायेंगे ? उपर्युक्त तीर्थकर आज से लाखों वर्ष पूर्व हुए थे, तब उन की मू। के निर्माण के समय उनका उपस्थित होना कैसे सम्भव हो सकता है। इस सम्बन्ध में नीचे के दृष्टान्त भी महत्त्व के है:१. संवत १५२२ में प्रतिष्ठित की गई मूर्ति के ऊपर लिखा है: जीवितस्वामिचन्द्रप्रभबिंब......" २. संवत १५०३ में प्रतिष्ठित मूर्ति के ऊपर बीवितस्वामिश्रीनमिनाथविवं पृष्ठ १६३ ३. संवत १५१६ में प्रतिष्ठित मूर्ति के ऊपर . जीवितस्वामिश्रीशान्तिनाथबिंब पृष्ठ १९३ पृष्ठ ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003205
Book TitleVeer Vihar Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1947
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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