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________________ प्रकरण पाँचवाँ . १८० वह घरपति अपनी शक्ति, संपत्ति, और अधिकार के सद्भाव में होकर उस परोपकारी पुरुष की सेवा और स्वागत ही करेगा। आपही बतलाइये कि आपके मन में ऐसे परोपकारी पुरुष के देखते ही क्या पूज्य भाव पैदा न होगा ? क्या आप उनकी अपनी शक्ति के अनुसार पुष्पादि से पूजा नहीं करेंगे? यदि हाँ, तो फिर उस परम प्रभू के विषय में ही ये निर्मूल शङ्काएं क्यों की जाती हैं । यदि कोई कठोर हृदय, कुबुद्धि पुरुष कदाग्रह के वश हो ऐसा नहीं करे तो क्या वह अपनी कुभावना से भविष्य में लाभ उठा सकता है ? क्या कोई सभ्य उसके इस कुकृत्य की प्रशंसा कर सकता है ? कदापि नहीं। ____ इसी प्रकार अधिकार और सामग्री के होते हुए भी जो परमेश्वर की द्रव्य भाव से पूजा न करे वह अपने हृदय की कठोरता के कारण भविष्य में कुछ भी लाभ नहीं उठा सकता। इसे आप स्वयं समभाव दिल से सोच लें। हम निराकार ईश्वर की उपासना उसकी आकृति (मूर्ति ) बना कर के ही कर सकते हैं, इसलिए ईश्वर की उपासनार्थ परमेश्वर की मूर्ति की परमावश्यकता है। आत्म कल्याण के लिए जो मूर्ति की आवश्यकता है सो तो है ही, परन्तु सांप्रत * इस विषय में यदि कोई अज्ञ स्वकल्पना से कुतर्क करें तो उनके निराकरणार्थ मेरी लिखी “मूर्ति पूजा विषयक प्रश्नोत्तर" नामक पुस्तक को ध्यान पूर्वक पढ़ें ? जो कि इसी पुस्तक के अनन्तर मुद्रित करवा दी गई है। उसमें प्रायः तमाम कुतर्कों के उत्तर युक्ति, शास्त्र और इतिहास के प्रमाणों से दिए गए हैं। उसे पढ़ने पर अज्ञों की की हुई कोई कुतर्फ घोष नहीं रह सकती । जिज्ञासु जन उसे पढ़ अपना आरम कल्याण करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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