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________________ ईसाई धर्म और अहिंसा ___आज विश्व में जिस मत के अनुयायी अरबों की संख्या में हैं ऐसे मत के संस्थापक प्रभु ईसामसीह ने ईसाई मत की नींव अहिंसा एवं प्रेम पर ही स्थापित की है । अपने शैल प्रवचन में "तू पाणि-हत्या मत कर" की सुवर्ण शिक्षा दी है । इस मत में जन-सेवा को प्रभु-सेवा माना गया है और इसी को ईश्वर के प्रति प्रेम रूप में पहचाना गया है । प्रेम के बिना अहिंसा और अहिंसा के बिना प्रेम की कल्पना ही नहीं की जा सकती । कौन-सा ऐसा धर्म है जो अपने प्रभु से मिलने के लिये जाते समय और तो सर्वस्व लेकर चले लेकिन अहिंसा को पीछे छोड़ दे । इसीलिये प्रभु योशू को भी कहना पड़ा कि यदि तू प्रार्थना के लिये धर्म मंदिर में जा रहा है और उस समय तुझे याद आ जाये कि मेरी अमुक व्यक्ति से अनबन या खटपट है तो तुझे चाहिये कि तू लौट जा और विरोधी से अपने अपराध की क्षमा याचना किये बिना प्रार्थना करने का तुझे अधिकार नहीं। __जैसे को तैसा का सिद्धांत गलत दर्शाते हुए कहा गया हैं कि आँख के बदलो आँख और दाँत के बदलो दाँत निकाल लेने से समस्या का वास्तविक समाधान नहीं मिल सकता। जो तुम्हारा बुरा करे उसका भी तुम भला हो करो, इसीलिये योशू कहते हैं-"अपने शत्रुओं से प्रेम रखो जो तुमसे बेर रखे उसका भी तुम भला ही करो, जो तुम्हें श्राप दे उनको तुम आशीष दो, जो तुम्हारा अपमान करे उनके लिये प्रार्थना करो, जो तेरे एक गाल पर थप्पड़ मारे उसको ओर दूसरा भी फेर दे और जो तेरी दोहर छोन लो उसको कुरता लेने से भी न रोक, जो कोई तुझसे माँगे उसे दे और जो तेरो वस्तु छीन ले उससे न माँग, और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करे तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।"१ १. बाइबिल लूका ६ : २७-३१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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