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________________ न हो इसके लिये वे घने जंगल में जाकर रहते थे। संत हसन बसरी भी प्रायः जंगल में उनसे मिलने जाया करते थे। एक बार वे राबिया के पास गये। उस समय राबिया ध्यानस्थ थे और उनके चारों ओर वन्य-वशु प्राणी-हित चिन्तक के रूप में बैठे थे। हसन साहब को देखते ही सभी पशु-प्राणी भयभीत होकर भाग गये । हसन साहब को बड़ा आश्चर्य हुआ। राबिया ने हसन से पूछा-किब्ला, आज आपने क्या खाया है? हसन साहब ने कहा-गोश्त । राबिया ने व्यंग्य का चाबुक फटकारते हुए कहा--"हसन साहब ! आप गोश्त खाते हैं, फिर भला ये बेचारे मासूम पशु-प्राणी आपसे भयभीत क्यों नहीं होंगे ? कब्रिस्तान के साथ साक्षात् यमराज को देखकर तो बड़े-बड़े योद्धा भी भाग खड़े होंगे, फिर ये बेचारे पशु-प्राणी भाग जायें तो इसमें आपको इतना आश्चर्य क्यों है ? मुल्तान के एक मौलवी ने मांस खाना छोड़ दिया। जिसका कारण उसने यूबताया “मैं एक दिन मुर्गी हलाल करना चाहता था। ज्योंहि मैंने उसे उठाया, वह मेरे मुह की ओर दुःख भरी आँखों से देखने लगी। मेरे दिल ने कहा कि बेचारी लाचार है, तुझसे रहम की भीख मांग रही है और तू इतना बेरहम है कि फिर भी बेचारी को मार डालेगा। दिल की पुकार को मैंने सुना और उस मुर्गी को छोड़ दिया । उस दिन से मैंने गोश्त न खाने को अहद (प्रतिज्ञा) कर ली।" सत्य ही तो है, मनुष्यों को प्राणों के बदले यदि पर्वत के समान सोना दिया जाये तो वह इतना मूल्यवान सोना भी नहीं लेना चाहेगा। विचारिये, जानवर का जीवन भी तो उतना ही प्यारा है। ___ महामान्य हजरत अली साहब फरमाते हैं किन्तु पशु-पक्षियों की कब्र अपने पेट में मत कर । सुप्रसिद्ध मुस्लिम बादशाह अकबर महान का कहना था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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