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________________ "यूपं कृत्वा. पशून हत्वा, रूधिर कईमम् । यो गम्यते स्वर्ग, नरके केन गम्यते" ॥ अर्थात यदि यूप करके, पशुओं की हत्या करके, रूधिर का कीचड़ करके स्वर्ग में जाते हैं तो नर्क में कौन जाते हैं ? ____ हम तो एक बात और कहेंगे कि यदि स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग इतना सीधा व सरल है तो मनुष्य स्वर्ग प्राप्ति के लिये कठोर तपस्या क्यों करते हैं। भगवान की वेदी पर अपनी ही बलि चढ़ा दिया करें कुछ क्षणों का ही तो कष्ट हैं फिर तो अनन्तकाल तक सुख ही सुख है । यह तो निःसंदेह है कि वैदिकी यज्ञ में बहुत हिंसा होती है । मत्स्य पुराण के १४३ वें अध्याय में कहा गया है "हिंसा स्वभावो यज्ञस्य" अर्थात यज्ञ का स्वभाव ही हिंसा है। इसी अध्याय में इस प्रकार का वर्णन है - निषियों ने सूतजी से पूछा कि त्रेता युग की आदि में यज्ञों की प्रवृत्ति कैसे होती थी ! जब सतयुग संध्या समाप्त होने पर त्रेतायुग की प्राप्ति होती है। नत्र बहुत सी औषन्नि उत्पन्न होती है, अधिक वर्षा होती है, ग्रामपुर आदि में उत्तम प्रतिष्ठित बातें होती हैं उस समय सब वर्णाश्रम इकट्ठे होकर अन्न को हकष्टा करके वेद संहिताओं से यज्ञों को कैसे प्रवृत्ति करते हैं ? ऋषियों के वचन सुनकर सूतजी कहते हैं --हे ऋषि लोगों, इस संसार के और परलोक के कर्मों में मंत्रों को युक्त करके विश्व का भोगने वाला इन्द्र ने सर्व साधनों और देवताओं से युक्त होकर जब यज्ञ किया तो उसमें बड़े- बड़े ऋषि आये। ऋत्विक ब्राह्मण यज्ञों के कर्मों को करके उस बड़े यज्ञ की अग्नि में बहुत प्रकार से हवन करने लगे । सामवेदी ब्राह्मण उच्च स्वर से पाठ करने लगे । अध्वर्यु आदि अन्य ब्राह्मण अपने कर्म करने लगे। यज्ञ में कहे हुए पशुओं का आलम्भन होने लगा। यज्ञभोक्ता ब्राह्मण और देवता आने लगे। उस यज्ञ में जब अध्वर्यु के प्रेरणे का समय आया तब ऋषि लोग खड़े हो गये और उन दीन पशुओं को देखकर विश्व भुक देवताओं से बोले कि तुम्हारे इस यज्ञ की कैसी विधि है ? यह हिंसा करना तो महा अधर्म है । हे इन्द्र तेरे इस - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003202
Book TitleVibhinna Dharm Shastro me Ahimsa ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1995
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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