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________________ ( 124 ) इन व्यसनों से सहज ही जान सकते है कि ये व्यसन सामान्य मनुष्य का भी महान अनर्थकारी हो सकते हैं तो फिर राजा जैसे महान व्यक्ति जिन पर लाखों मनुष्यों की प्रजा की जिम्मेदारी हो उसके लिए अनर्थकारी हो, तो इसमें आश्चर्य ही क्या ? इन व्यसनों में आसक्त रहने वाला राजा कभी भी अपनी प्रजा के अयवा राज्य के रक्षण करने में समर्थ नहीं हो सकता । इसलिए शास्त्र कारों के वचनों को ध्यान में रखकर राजा को इन व्यसनों से दूर ही रहना चाहिए। ___ सिद्धचन्द्रजी के उपदेशों का बादशाह पर इतना प्रभाव पड़ा कि उसने अक. बर के समय से चली आ रही परम्पराओं को जारी रखा। 3. आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी-. ___ आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी जिस समय लाहौर में अनबर के दरबार में गये थे शहजादा सलीम उसी समय उनका भक्त हो गया था । अकबर की मृत्यु के बाद सलीम "नूरुद्दीन जहांगीर" के नाम से गद्दी पर बैठा तब भी सूरिजी को पूर्ववत् सम्मान की दृष्टि से देखता था। जहांगीर का चारित्रिक दोष था कि वह अत्यधिक मद्यपान के साथ-साथ अति क्रोधी स्वभाव का था। यही कारण था कि मद्य के नशे में कई बार वह ऐसे आदेश प्रसारित कर देता था कि निर्दोष लोग भी उसकी चपेट में आ जाते थे। सम्वत् 1668 (सन् 1611) में एक शिथिलाचारी वेषधारी दर्शनी को अनाचार करते हुए देखकर सम्राट ने उसे तो देश निकाला दिया ही, साथ ही साथ सब यति साधुओं के चरित्र के विषय में शंकित होकर यह हुवम जारी कर दिया कि राज्य में जहां कहीं दर्शनी सेवडे हैं या तो वे ग्रहस्थ वेश धारक बन जायें या राज्य से बाहर निकल जायें। जहांगीर ने अपनी आत्म कथा में लिखा है-"हमने आज्ञा दी कि ये सेवडे निकाल दिये जायें और हमने फरमान, भी चारों ओर भेज दिये, सेवडें जहां भी हों वहां से हमारे साम्राज्य के बाहर निकाल दिये जायें:" इस घटना का विवरण विजय तिलक सूरिरास में भी मिलता है: - 1. जहांगीर नामा-हिन्दी अनुवाद ब्रजरत्नदास पेज 500 2. "गच्छनायकना बोल उथापि निजमत परूपई आपो आपि । एहवई पृथ्वीपति जहांगीर, दोषी वचने लागो वीर ॥ वेषधारी ऊपर कोपियो, मुतकलनई देसोटो दियो। मलेछ न जाणई तेह विचार, आचारी मोकल अणगार ॥ विजयतिलकसूरि रास-पन्यास दर्शन विजयजी पृष्ठ 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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