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________________ ( 116 ) प्रतिदिन भत्ता दिया जाता था तथा उनके धार्मिक पर्वी पर विशेष राशि स्वीकृत की जाती थी। एक ईसाई गरीब को जहांगीर ने पचास रुपये मासिक की अनुग्रह राशि स्वीकार की थी। यह अन्तिम तथ्य तो जहांगीर के हृदय की उदारता एवं कोमलता है, इससे कोई धार्मिक पक्षपात प्रभावित नहीं होता। (ब) जहांगीर का धार्मिक दृष्टिकोण - जहांगीर के काल में भारत में हिन्दू धर्म तथा इस्लाम का तो प्रमुख रूप से प्रसार हो ही रहा था। दिल्ली में आगरा तथा राजस्थान होकर गुजरात तक जैन मत का भी बहुत प्रचार हो चुका था तथा इस क्षेत्र में अनेक जैन आचार्य चातुर्मास व्यतीत करते हुए जैन धर्म के लोगों को दीक्षित कर रहे थे । उधर उत्तर में गुरू अर्जुन देव के द्वारा सिख धर्म का जोरों से प्रचार किया जा रहा था। सूफी सन्त भी धार्मिक उदारता के साथ लोगों को अपनी ओर आकृष्ट कर रहे थे । यह सब अकबर की उदार धार्मिक नीति का ही परिणाम नहीं था अपितु यह समाज में धार्मिक चेतना का प्रतीक प्रमाण भी था । जहांगीर मन से भी अकबर से ज्यादा धार्मिक था तथा धर्म गुरूओं की आध्यात्मिक शक्तियों पर भी विश्वास करता किंतु इस चतुर्दिक धार्मिक चेतना की प्रतिक्रिया से वह बच न सका । जहां शंकालु स्वभाव का व्यक्ति था वह सभी धर्म गुरूओं को प्रसन्न भी रखना चाहता था वह इन धर्म गुरूओं को अपने पक्ष में रखने के लिए उनके तथा उनके सम्प्रदाय के प्रति विशेष उदारता भी प्रकट करता था। उसकी इन शंकाओं के पीछे राजनीतिक कारण थे। स्वयं सत्ता प्राप्त करने के लिए उसका हृदय साफ नहीं रहा था तथा उसके उत्तराधि. कारियों में भी यही भावना रही थी। अत: वह अपने को तथा अपनी सत्ता को सुरक्षित रखने के लिए धर्म गुरूओं का सहारा लिया करता था जब वह इलाहा. बाद में सूबेदार की हैसियत से रह रहा था उस समय उसने बनारस में हिन्दू मन्दिरों के निर्माण को प्रोत्साहन दिया। उसके गद्दी सम्भालने पर उसके मित्र वीरसिंह बुन्देला ने मथरा में मन्दिर बनवाया उसने ईसाइयों को भी सूरत तथा अन्य स्थानों पर गिरजाघरों का निर्माण की अनुमति दी लाहौर एवं आगरा में उसने ईसाइयों के कब्रिस्तान भी सुरक्षित घोषित किये । सभी धर्मो के सार्वजनिक उत्सवों को मनाये जाने की जहांगीर ने खुली इजाजत दे रखी थी। किन्तु जहां. गीर के कुछ मनसबदार असहिष्णु स्वभाव के भी थे । वे मन्दिरों को तुड़वाकर मस्जिद बनवा देने में अपनी शक्ति की सार्थकता मानते थे । राज्याभिषेक के 8 वर्ष में जहांगीर के अजमेर जाने पर वहां स्थित वराह मन्दिर को उसकी सेना ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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