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________________ ( 73 ) इसी तरह सुबुक्तगीन के स्वप्न की बात भी सर्वविदित है कि वह एक धारण स्थिति का मुसलमान था, किन्तु था बड़ा दयालु । खुद दरिद्र होते हुए किसी को दुखी देखकर उसकी सहायता करने को तैयार रहता था । एक दिन घोड़े पर चढ़कर जंगल में घूमने गया। वहां उसने एक हिरन के बच्चे को तो उसे अपने घोड़े पर ले लिया। बच्चे की मां कुछ ही दूरी पर घास खा थी । जब उसने देखा कि मेरे बच्चे को एक आदमी लिये जा रहा है तो वह के पीछे-पीछे चलने लगी । बच्चे के वियोग में उसका चेहरा उतर गया । बुक्तगीन को उसके दर्द का अहसास हुआ । उसने सोचा अगर यह हिरनी बोल सकती होती तो जरूर बच्चे को छोड़ने की प्रार्थना करती । मूक पशु के दर्द को समझते ही उसने बच्चे को धीरे से नीचे रख दिया । हिरनी बड़े आनन्द पूर्वक बच्चे को प्यार करने लगी इस दृश्य को देखकर सुबुक्तगीन को लगा कि यह हिरनी मझे आशीर्वाद दे रही है । इसी रात सुबुक्तगीन ने एक स्वप्न देखा । स्वप्न में खुद उसके पास जाकर कह रहे हैं कि सुबुक्तगीन तूने आज बच्चे पर जो दया दिखाई है इससे खुदा तेरे पर बहुत प्रसन्न हुए हैं, उनकी इच्छा तू राजा होगा । और जब तू राजा हो तब भी तू दुखियों पर उसी प्रकार दया करना, वैसा करने में खुदा तेरे पर हमेशा खुश रहेंगे । सचमुच कुछ दिन के बाद हुबुक्तगीन राजा हआ । मे मानो हजरत मुहम्मद हिरनी और उसके मुसलमानों में दया सम्बन्धित इतने प्रमाण मिलने के बावजूद भी क्या कारण है कि उनमें बकरे, भेड़िये एवं ऊंट वगैरह की कुर्बानी दी जाती है ? आइये, एक नजर इसकी मूल उत्पत्ति पर डालकर देखें तो हमें क्या रहस्य मालूम ता है इब्राहीम पैगम्बर जब इमान में आये तब उनके इमान की परीक्षा करने लिए अल्लाहताला ने उनको कहां कि "तुम अपनी प्यारी से प्यारी चीज की र्वानी दो" तो इब्राहीम पैगम्बर ने अपने इकलौते पुत्र इस्माइल को मारने के ए तैयार किया और अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर छुरी से जैसे ही उसे मारने गते हैं, वैसे ही अल्लाहताला की कुदरत से लड़के के स्थान पर एक भेड़ (दुम्बा ) कर खड़ा हो गया । वह कट गया और लड़का बच गया। बाद में अल्लाहताला उस दुबे को भी जिन्दा कर दिया । इस कथा से हमें यह नहीं समझ लेना चाहिये कि इब्राहीम पैगम्बर ने ने लड़के के बदले दुम्बे को मारा तो दुम्बे अथवा बकरे की बलि देना उचित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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